स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी महाकाव्यों में राजनीतिक चेतना | Swatantryottar Hindi Mahakavyon Mein Rajnitik Chetna

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Swatantryottar Hindi Mahakavyon Mein Rajnitik Chetna by सुषमा कश्यप - Sushma Kashyap

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(15) सम्बन्धो का आदर + राजतत् के प्रति जन अवधारणा , राजतत की उपयब्धिया--साहित्य, समीत आदि कलाजओं को प्रश्नय, सामा- जिक उत्सवो का समायोजन , स्वातठ़ृपोत्तर हिन्दी महाकाब्यों में उपयुक्त प्रवृत्तियो का सघान , सिध्कष 1 सोकतांत्रिक समार्भवादी चेतना उब8-211 समानवाद--स्वरूप, परिभाषा भर मूल तत्त्व, समाजवाद झौर लोकतत्र एव अग्प वाद--पूजीवाद, प्रजातक्रवाद, गाँधीवाद, साम्यवाद, अराजकतावाद आदि ;. समाजवादी. विचार देन दाशेमिक, सामाजिक, पायिक, राजनीतिक एवं कलागत पहलुओं के परिप्रेकष्प मे ; समार्जवाद के प्रमुख मेद प्रमेद--कर्टपनावादी समाज- बाद, फेदियन समाज॑वाद, प्रजाताहिक समाजवाद, श्रेणी समाजवाद, बैज्ञानिक समाजवाद या मा्वर्सवाद भादि , लोकतातश्रिक समाजवाद की भारतीय परम्परा बौर उसके प्रमुख चिन्तक--एम० एन० राय, श्ाचायें नरेद्र देव, प० जवाहरलाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण, डा० राममनोहर लोहिया, श्रीपाद अमृत डागे , लोफ्तात्रिक समाजयाब को सूलमुत प्रवुत्तिया ओर दिदिष्टताएं--सामाजिक संगठन का लोकतब्लीय आधार , सलोक-सामध्य या जन-शव्ति में आस्था , ध्यप्टि के स्थान पर समप्टि को मान्यता, पूजीवादी शोषण का प्रतिरोध , शोपितों, दलितों एवं पीडितो के प्रति सहानुभूति ; सामाजिक समता की सकल्पना , श्रम की महसा का प्रतिपादन, रत्पादन के साघनों का राष्ट्रीयकरण, राजनीतिक ठौर आर्थिक स्वतन्नत्ता पर समान बल, मूल मानवीय अधिकारों का अनुसम्थय आदि । स्थातश्योत्तरं हिंग्दी महाकाव्यों मे लोकतात्रिक समाजवादी प्रवृत्तियों, दिशिव्टताओं आदि का अन्वेपण, निष्कर्ष । राष्ट्रवादी चेतना 212-262 राष्ट्र + ाब्दिक व्युत्पत्ति एव पारिभाधिक स्वरूप दिदले- घण--कोशीय जयें, राष्ट्र और राष्ट्रीयता, राष्ट्र और राज्य का सबघ एवं अन्तर, राष्ट्रवाद की विधिघ परिभाषाएं और सर्वाधिक स्वोइत परिभाषा का निर्धारण, राष्ट्रीयता के तत्व । राष्ट्रवाद के विविध प्रवार , राष्ट्रवादी चेतना का विकासात्मक परिप्रेक्ष्य , रामायण-महा- 'मारठ काल, स्वदेश गौरव एव राष्ट्रभक्ति, स्वणिम अतीत का गौरव- गान, राष्ट्र वदना के स्वर एवं प्रशस्ति गान, राष्ट्र की हीनावस्था जून शस्द>सतर कटी चाय उ क ि खन




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