जीतकल्प - सूत्रम | Jeetakalp - Sutram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
93
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१
धुतघर-श्री प्रयुप्न शमा श्रमणा दिशिष्यत्वेन श्रीदरिभद्रसरितः प्राचीना एवं यथाकालमा-
विनो बोध्या: । १११५ श्रीजिनमद्रगणियुगप्रधान! । अय॑ च जिनभद्री यध्यानशतक-
करणान् मिन्न। संभाव्यते ।
--इण्डियन एण्टीकेरी, पु. ११, ऐए. रे५३.
खरतर गच्छनी पट्टावलिओ--जेमां छेछा सैकामा थई गयेला क्षमाकल्याणमुनिनी बनावेठी
मुख्य कही शकाय अने जेनो सार डॉ. क्लाटे इण्डियन एण्टिकेरीना पु० ११, प्र० २४३-४९
मां भाप्यो छे--ते अनुसारे जिनभद्रनो समय वीरनिवोणनों दशमों सेको छे । ए पहटावलिमां
ठख्या प्रमाणे वीर स० ९८० मा देवड्िंगणी थया । ते ज समयमां चतुर्थीनी संबत्सरी स्थापन
करनार कालकाचाये थया ( वी. सं. ९९३ ), ते ज अरसामा विशेषावइयक भाष्यादिना करता
[ बीजी प्रतिप्रमाणे सर्वे भाप्यकर्ता ]. जिनमद्रगणी क्षमाश्रमण ( वी. स. ९८० ), तथा
आचारांगादि सूत्रोनी टीका करनार तेमना शिष्य शीठाकाचाय थया, जने ते ज जमानामां
१४४४ प्रन्थोना रचनार हरिभद्रसूरि थया । आ प्रमाणे आ पहट्टावलिलेखकना हिसाबे
देवर्घिगणी, कालकाचाय, जिनभद्द, सीलाकाचाये अने हरिभद्रसूरि' ए बधा समकालीन छे ।
आ बधामां हरिभद्रसूरि सिवाय बाकीमा आचार्योनो समय हजी प्रमाण-पुरस्सर निर्णीत
थयो नथी । पण, साप्रदायिक इतिहासनु एकदर वण जोता ए बधा समकालीन होय
तेम समवतु नथी । हरिभद्रनों समय, उगभग विक्रमना आठमा सैकानों छेछो भाग निश्चित
थयो छे । देवर्षिगणी अजने कालकाचाये छड्टा सैकानी हुरुआतमां थएला मनाय छे । एटले
एमनी वच्चे ओछामा ओछु २५० वर्ष जेट अतर पड़े छे । एमाथी हरिभद्रने बाद करी
देवामा आवे--कारण के तेमनो समय निर्णीत छे--अने बाकीना बधाने समकालीन मानी
लेवामां आवे तो ते सप्रमाण होई झके के केम, ए प्रभ विचारणीय रहे छे खरो । पण, आ खडे
देवधिगणी अने कालकाचायेना समयना विचारने पुरतो अवकाश नथी, तेथी हु ए बाबतने
वगर चर्चे ज मुंकी देवा मागु छु।
जिनभद्रगणी अने शीलाकाचायनी समकाठीनता अने गुरु-शिप्य-सम्बन्ध माटे काईक
विचार अवइय कर्तव्य छे । कमनझीबे, सशीलाकाचाय सबधी जे सबतनों उछेख मढे छे ते
पण परस्पर विरोधी छे । आचारागसूत्रनी टीकानी केटठीक प्रतिओमा टीका बनाव्याना
समयनो निर्देश बे रीते मठे छे। एक निर्देश गयमा छे, अने बीजों पद्यमा छे । तेमाए वी
द्रेकमां बब्बे पाठमेद छे ।
(१) 2 पहेलो गद्य निर्देश आ प्रमाणे--
“शकनूपकाठातीतसंवत्सरशतेष्ु सप्तसु चतुरशीत्यधिकेषु वेशाखपश्चम्यां
आचारटीका दृष्घेति ।''
खंभातना शान्तिनाथना भंडारमा सं० १३२७ मां लखाएठी ताडपत्रनी प्रति छे तेमां था
पंक्ति छे. जुओ, पीटसैन रीपोट ३; पर. ९०.
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