जीतकल्प - सूत्रम | Jeetakalp - Sutram

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Jeetakalp - Sutram by मुनि जिनविजय - Muni Jinvijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ धुतघर-श्री प्रयुप्न शमा श्रमणा दिशिष्यत्वेन श्रीदरिभद्रसरितः प्राचीना एवं यथाकालमा- विनो बोध्या: । १११५ श्रीजिनमद्रगणियुगप्रधान! । अय॑ च जिनभद्री यध्यानशतक- करणान्‌ मिन्न। संभाव्यते । --इण्डियन एण्टीकेरी, पु. ११, ऐए. रे५३. खरतर गच्छनी पट्टावलिओ--जेमां छेछा सैकामा थई गयेला क्षमाकल्याणमुनिनी बनावेठी मुख्य कही शकाय अने जेनो सार डॉ. क्लाटे इण्डियन एण्टिकेरीना पु० ११, प्र० २४३-४९ मां भाप्यो छे--ते अनुसारे जिनभद्रनो समय वीरनिवोणनों दशमों सेको छे । ए पहटावलिमां ठख्या प्रमाणे वीर स० ९८० मा देवड्िंगणी थया । ते ज समयमां चतुर्थीनी संबत्सरी स्थापन करनार कालकाचाये थया ( वी. सं. ९९३ ), ते ज अरसामा विशेषावइयक भाष्यादिना करता [ बीजी प्रतिप्रमाणे सर्वे भाप्यकर्ता ]. जिनमद्रगणी क्षमाश्रमण ( वी. स. ९८० ), तथा आचारांगादि सूत्रोनी टीका करनार तेमना शिष्य शीठाकाचाय थया, जने ते ज जमानामां १४४४ प्रन्थोना रचनार हरिभद्रसूरि थया । आ प्रमाणे आ पहट्टावलिलेखकना हिसाबे देवर्घिगणी, कालकाचाय, जिनभद्द, सीलाकाचाये अने हरिभद्रसूरि' ए बधा समकालीन छे । आ बधामां हरिभद्रसूरि सिवाय बाकीमा आचार्योनो समय हजी प्रमाण-पुरस्सर निर्णीत थयो नथी । पण, साप्रदायिक इतिहासनु एकदर वण जोता ए बधा समकालीन होय तेम समवतु नथी । हरिभद्रनों समय, उगभग विक्रमना आठमा सैकानों छेछो भाग निश्चित थयो छे । देवर्षिगणी अजने कालकाचाये छड्टा सैकानी हुरुआतमां थएला मनाय छे । एटले एमनी वच्चे ओछामा ओछु २५० वर्ष जेट अतर पड़े छे । एमाथी हरिभद्रने बाद करी देवामा आवे--कारण के तेमनो समय निर्णीत छे--अने बाकीना बधाने समकालीन मानी लेवामां आवे तो ते सप्रमाण होई झके के केम, ए प्रभ विचारणीय रहे छे खरो । पण, आ खडे देवधिगणी अने कालकाचायेना समयना विचारने पुरतो अवकाश नथी, तेथी हु ए बाबतने वगर चर्चे ज मुंकी देवा मागु छु। जिनभद्रगणी अने शीलाकाचायनी समकाठीनता अने गुरु-शिप्य-सम्बन्ध माटे काईक विचार अवइय कर्तव्य छे । कमनझीबे, सशीलाकाचाय सबधी जे सबतनों उछेख मढे छे ते पण परस्पर विरोधी छे । आचारागसूत्रनी टीकानी केटठीक प्रतिओमा टीका बनाव्याना समयनो निर्देश बे रीते मठे छे। एक निर्देश गयमा छे, अने बीजों पद्यमा छे । तेमाए वी द्रेकमां बब्बे पाठमेद छे । (१) 2 पहेलो गद्य निर्देश आ प्रमाणे-- “शकनूपकाठातीतसंवत्सरशतेष्ु सप्तसु चतुरशीत्यधिकेषु वेशाखपश्चम्यां आचारटीका दृष्घेति ।'' खंभातना शान्तिनाथना भंडारमा सं० १३२७ मां लखाएठी ताडपत्रनी प्रति छे तेमां था पंक्ति छे. जुओ, पीटसैन रीपोट ३; पर. ९०.




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