सड़कवासी राम | Sadakavasi Ram
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
658 KB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शुगा जंगतस भर
जो रह गया है हमारा भाज;
कोई'**कोई दूसरा नहीं लिखता
किसी की भी नियति
यह सब तो
हमारे, हां हमारे सोच,
हमारे कर्म का परिणाम,
पानी जो मर गया है
अब कैसे सड-झगड से लें
समझ के धडतिये से
पूरे भीतर को खीच दाहर
निपट आदम-सा
उधाडने वाली भाषा;
न जोड पाएंगे हम
उनसे कभी आंखें
तो आा **आ उन्हे सुनकर
हम अपना सत्य
शिव तो से ही लें
सुनें”**पावो की थपक
वे भा रहे हैं '*
हमसे ही नहीं
हमसे भी बहुत पहले
दी जाती रही
काली कामरी को
बोच से ही फाड़कर
वे भा रहे हैं !
भा, उनके नहीं
अपने ही बित्ता-भर रह गए
भविप्यत के नाम
आ, चुपचाप बिछ जाएं
सडक हो जाए उनके लिए !
सड़कबासी राम / 19
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