अधूरे गीत | Adhure Geet

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Adhure Geet by हरीश भादानी - Harish Bhadani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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7 चूर > चस कर पाखंडी धनवान्‌, জা ढेर हमारा समदर्शी भगवान्‌ । कफ़न क दूकान करता ह दरबारे-ग्राम ঘুজাহিহা कोई खोलो एक दूकान कफ़न की । मफलिस मजहदूरों के लिए कि जिनको - चलते-चलते साँस फूल जाती है नंगे हलवालों के लिए कि जिनकी , नकं तपन से मलस भूल जाती हैं , “, श्रादम जात बैल के लिए कि जिसको हे : बोभा ढोते कमर टूट जाती है। 4 श्रीरवेटकेलिए कि जिसकी प्राग बर्न बरबस धार फूट आती है। 5 न जाने. कब चौराहे पर ही ससि तोड दे, चलता-फिरता फाकाकर इन्सान, ২81, न जाने बनिये का ही सूद चुकाता | मर जाए कब दुबल दीन किसान । ५५.४५ तिजोरी भरे खचाखच खून-पसीना | देखता रहे गगन से सड़ी लाश तकाजा करता सब आशायें त्याग, . करो इन पर तुम इतना तो भ्रहसान, देख लो श्रगर सडक पर लाश कफ़न से ढाँक ज़नाज़ा ले जाश्रो शमशान। _ १०




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