गीतायन | Geetayan

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Geetayan by हरीश भादानी - Harish Bhadani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भायप्तसभण न तू मत असमना से कर तू मम प्रममगा मे कर भपना इसमें कुछ दोप नहीं तेरा भरतो के कामज्‌ पर मेरी तस्वोर भ्रमूरी रहती थी ! रेते पर शिके माम णैधा मुम्झो दो पड़ी उमरता था मत्तयामिल्त के बहुकासे से दख एऋ प्रभाव मिसरमा था ) गूमे के मनोमाव जैते बारी स्वोकार मर कर पाये ऐसे हो मेरा हृदय कुसुम भसमपित सूथ बिशरमा था! कोई प्यासा मरता शैसे शस के पमाव में बिप पी से मेरे जोबस में भी कोई ऐसी मजबूरी रहती थी।!! इभ्सभों से उमते शिरने सर के सब छफस नहीं हांते सब कहीं लहर के घूड़े में सरुणारे कमस नहीं होते ! भाहो का अंतर नहीं भपर प्रंतर तो रेसापों का है हरएक दोप के छुँसने को शोसे के महल महीं होते ! दर्षण में परप्ताई जैसे दीसे हो पर प्रनछुई रहे सारे सु धोरम दी मुमसे ऐसी हो धृरों रहनी थी!!! क्षामद मैंने कत ऊूनमों में प्रषधसे भीड़ तोड़े हमसे खरातक का स्वर सुनने कास्ते दादप्त बापस मोड़े हृति ! ऐसा पपराष हुमा होदा शिउको फिर छ्वमा नहीं मिन्नतो तिहसी के पर नीचे हंगे, हिरमों के हप फोड़े होमे ! प्रसशितती कर्ज चुकाने थे इससिसे जिन्दमो भर मैरे तम्र को मेचेन मटकना था मन में कस्टूरो रहनो थी !! हू मत भनमता स्‌ कर अपना इसमें झुछ दोप महीं तेरा घरठी के कायद पर सेरो तस्वीर पघुरो रहमीवी)। . ७७




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