सड़कवासी राम | Sadakavasi Ram

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Sadakavasi Ram by हरीश भादानी - Harish Bhadani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शुगा जंगतस भर जो रह गया है हमारा भाज; कोई'**कोई दूसरा नहीं लिखता किसी की भी नियति यह सब तो हमारे, हां हमारे सोच, हमारे कर्म का परिणाम, पानी जो मर गया है अब कैसे सड-झगड से लें समझ के धडतिये से पूरे भीतर को खीच दाहर निपट आदम-सा उधाडने वाली भाषा; न जोड पाएंगे हम उनसे कभी आंखें तो आा **आ उन्हे सुनकर हम अपना सत्य शिव तो से ही लें सुनें”**पावो की थपक वे भा रहे हैं '* हमसे ही नहीं हमसे भी बहुत पहले दी जाती रही काली कामरी को बोच से ही फाड़कर वे भा रहे हैं ! भा, उनके नहीं अपने ही बित्ता-भर रह गए भविप्यत के नाम आ, चुपचाप बिछ जाएं सडक हो जाए उनके लिए ! सड़कबासी राम / 19




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