पुजारी सामाजिक क्रांति पर एक मौलिक उपन्यास | Pujari Samazik Kranti Par Ek Maulik Upanyas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : पुजारी सामाजिक क्रांति पर एक मौलिक उपन्यास  - Pujari Samazik Kranti Par Ek Maulik Upanyas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नानक सिंह - Nanak Singh

Add Infomation AboutNanak Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पूर्वार्ध पुजारी 'प्राज सारा दिन क्या लिंउने में हो गुडार देगा बेटा ? साक हो गई है भ्रीर साना भ्रमी तक **”* साफ सच ही हो प्राई थी धौर चन्दन ने दोपहर का खाना श्रभी तक नहीं खाया था, इस बीच जितनी वार भी “गुरो' श्राई, चन्दन को उसने लिखने में व्यस्त पाया । जितनी बार भी उसने साना खाने को कहां, चन्दन ने “प्रमी प्राता हूं” कहकर उसे टाल दियां। उसकी मां सोचती रहददी--'कंता सिर्री लड़का है जो खाने-पीने तक की भी सुध नहीं है इसे ।' “चन्दन ने जब मां से फिर वही सुना तो भ्ुकेलाकर उसने उसे टोका--“बयों बार-बार वेंग करती हो भा ? कह जो दिया कि काम सतम करके मा रहा हूं ।” खन्दन की डपट सुनकर गुरो लौटी, जैसे इससे पहले कई वार लौट चुकी थी । सहसा उसकी नजर फर्ण पर पड़ी, जहां कितने सारे लिखे हुए कागज बिखरे पढ़े थे । मानो चन्दन रद्दी करने के लिए ही लिख रहा था । इस श्रनोसी लिसाई का कारण पूछने के विचार से गुरो के कदम ठिठके गए, पर डरते-दरते । बेटे को नाराज करना उसे सहा नही था । इघर चन्दन उसी चुन में कागज काले किए जा रहा था। उसका स्पाल था कि फंटकार सुनकर गुरो थैली जाएगी, पर उसे वही पाकर वह श्रौर भी भलला उठा । गुरो दो पम भ्रागे बढ़ श्राई, श्रौर टरते-डरते बोली--'पर यह लिख वया रहा है तू, जो खतम होने में ही नहीं श्राता ? ” चन्दन की सीक चाहे बढ़ गई, पर पहले की तरह वह उसे प्रकट नहीं कर पाया । कदाचितु मां को वार-वार दुत्कारने से सस्ते भ्रपने पर कुछ ग्लानि हो श्राई थी । बोला--“कु नहीं माँ, एक मजमून लिस रहा हूं ।”




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now