नवयुग आया | Navayug Aayaa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगवती प्रसाद बाजपेयी - Bhagwati Prasad Bajpeyi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[: १९ 3
तेरे साथ श्र कौन है?” यद्यपि बह अपने प्रश्न से ही पूछ लेन
चाहता है कि तेरा साध कौन देता है? आज का समाज क्य
साथ देने की भावना अपने सें रखकर चल्त रहा है? एक से दो
दो से चार, फिर दर्जनों वर्ग ्औौर समूह बन गये हैं और परस्पर
सोच-खसोट में लगे हैं । संघर्ष ने निर्माण को दबोच रखा है ।
वालिका बोली-“लछमन से पुरवा में रहती हूँ, बायू जा !
बप्पा बीसार है । इसी सारे मैं झाई हूँ; नहीं तो वही ते हैं ।”
युबक--“श्ौर तेरी साँ ?--वह नहीं आती 1”
बासिका--'अम्भा *--वे तो अन्थी हैं ?”
हाय रे संपार !--युवक का हृदय एक दस से स्थिर हो
उठा । उसके जेव में रुपयों के साथ पैसे क्रेवल दो ही बसे थे 1
सो उन्हीं पैसों को उसने चट से सिकाला,; उसी बथुए की भोली
सें फंककर बहू रूमाल अआाँखों से लगाकर वहाँ से चल दिया !
बालिका कहती रही--“अरे चावू, बथुआा भी तो लिये
जाओ |”
पर युवक थोड़ी देर भी वहाँ ठहर ले सका |!
रे 2)
अस्सा से पूछा--“थाज इस समय तू उदास-सा क्यों देख
पढ़ता है, मैया 7”
रजन थागे के दोसों बड़े बड़े दाँत दिखाते हुए हँसने का-सा
मुद्द बनाकर बघोला--“नहीं तो !*
बम्मा बोली--“अब चाहे हँस ही दे; पर तेरा मुं हू झाभी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...