काव्य प्रदीप | Kavya -pradeep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.47 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इृश्य श्औौर श्रव्य ७
इघर नाटक शब्द का प्रयोग 'रूपक के 'झथ से होने लगा है, परन्तु
(२) प्रकरण--इसकी कथा लौकिंक एव कवि-कल्पित दोतो है ।
इसमें प्रधान रस शड्ार ता हैं, और नायक ब्राह्मण, मन्त्री अथवा बेश्य
दोता है| बह धर्म, झर्थ और काम से परायण वीर होता है तथा बिन्न-
चाधाओओं का सामना करते हुए सफल मनोरथ होता हैं। इसमें नायिका
कद्दी छुलकन्या होती , कही वेश्या और कही देने होती हैं । इसका पक
मेद धुर्त, जुद्मारी, विट, चेटादि पात्रों से थुक्त होता है । अन्य बातो में
यू नाटक के समान ही दोता है |
(३)भाण--इसमें धुर्तों का ही चरित्र अनेक श्रवस्थाद्ओो से व्यास
दिखाया जाता है । इसमें एक ही श्रक्क आर एक ही पात्र होता है । चह
पात्र कोई बुद्धिमान विट होता है। वह रंग मद्ध पर पनी या ओ्औरों की
नुभूत त्रात्तों का कथोपकथन के रूप में “'झाकाशभापित” के द्वारा (स्वयं
ही पूछता शरीर स्वयं उत्तर देता हुआ ) प्रकाशित करता है इसका भी
कथानक कल्पित दोता है | ः
(४) त्हसन--यदद भी! भाण के ही समान होता है; पर इसमें झस्य-
रस की श्रधिक्रता रहती है । इसमे नायक के रूप में स न्यासी, तपस्वी,
पुरोहित नपुसक, कश्ुकी दादि की योजना की जाती है ।
(५४१ डिम--इसकी कथा पुराण या इतिहास-प्रसिद्ध होती है । यह
माया, इन्द्र जाल, सं याम; क्रोध, उन्मत्तादिकों की चेष्टा तथा उपरागों
(सूर्य, चन्द्र -गहण) झ्रादि के वृत्तान्त से पूण रहता है ! इसमें रोद्र रस
प्रघान द्ोता है तथा शान्त, द्वास्य और श्द्ार के अतिरिक्त अन्य रस
उसके सद्दायक होते हैं । इसमें चार आ्रड्ड होते हैं; प्रवेशक नहीं होते ।
इसमें देवता; गन्धर्व; यक्॒ राक्षस, मद्दोरग, भूत, प्रेत, पिशाच आदि
च्त्यन्त उद्धत सोलदद नायक होते हैं |
(दे) च्यायोग--इसका भी श्राख्यान पुराण या इतिहास मसिंद्ध होता
है, पर इनमें नायक 'ीरोद्ध त राजर्षि अथवा दिव्य परुप दोता है। इसमें
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