Balgeeta by रामजीलाल शर्मा - Ramjilal Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय । ४ अज्ञुन के शंख का नाम देवदत्त। फिर, भीम- सेन ने भी अपने पाण्ड नाम के बड़े भारी शंख के चजाया । युधिष्टिर ने अनन्त विजय नामक दांख चज्ञाया ग्राोर नकुछ ने सुघाष श्रार सददेव ने मणिपुष्पक नाम दस वज्ञाये । घनुपघारी काशिराज, महारथी शिखण्ठी, ट्रोपदी का भाई '्रप्रयुन्न, विराट श्रौर सदा जय पाने चाला सात्यक्ति, दुपद, द्रौपदी के पुत्र धार सुभद्रा के पुत्र महदावली अभिमन्यु, इन सबने भी अपने अपने शंख बजाये | उन' दाखें के बचने से सारा आकाश गूंज उठा । ' पाण्डवों ने ऐसे ज़ोर से दयख बजाये जिनके भोमनाद का सुन कर कारवेां की छाती दृद्दल गई । सब कारवें के! लड़ाई के लिए. तैयार खड़े देख कर अज्ञुन ने भी अपने अख्र दाख्र संभाल लिये । सब ठीक ठाक है जाने पर अज्ुन ने श्रीकृष्ण से कहा ,कि; तुम मेरा रथ दोनिं सेनाग्रां के वीच में ले चला । में चहाँ चल कर देखूं ते कि, कान याद्धा मुझसे लड़ाई करने लायक है, किसके साथ में युद्ध करूँ । में चल कर देखूं ते दुचुद्धि डर्योधन की -ओर से कान कोन दारवीर लड़ाई के लिए आये हैं । यह सुन, श्रीकृष्णचन्द्र ने अज्जुन का रथ दोनों सेनाग्रां के वीच मं च्दीं जा खड़ा किया जहाँ भीष्म जी प्रीर द्रोणाचाय्य आदि दयुरवीर युद्ध के लिए तैयार खड़े थे। दाने सेनाग्रां के वीच में पडुँच कर, अजु न ने, अपने




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