प्रबन्ध - पारिजात | Prabandh-parijat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४ बहुन्नीदि--जितेन्द्रिय, छतकाये; दत्तचन, उपडृतपयु, दशा- सन, सइखबाहु, चन्द्रमोलि, प्रफुल्लकमल । वाक्य-रचना में कत्तो और क्रिया तथा विशेष्य और बिशे- चण के लिंग-वचन की समानता पर विशेष ध्यान देना चाहिए । चिन्द-रह्ित कत्तो की क्रिया कती के अनुसार रददती है। यदि वाक्य में एक ही लिंग, वचन, 'और पुरुष के कई चिन्दरहित कत्तों 'और' से संयुक्त हों तो क्रिया उसी लिज् में बहुबचन में होगी । परन्तु यदि वाक्य में दानों लिंगों और वचनों के कर्ता हों तो किया बहुबचन के सिवा लिंग में झन्तिम कत्तो के छ्जुसार होगी । कत्तो में ने चिन्दू लग जाने से यदि कर्म चिन्ह रहित हैं. तो क्रिया कर्म के अनुसार दोगी । परन्तु यदि दोनों चिन्द-युक्त दों तो क्रिया सदा एक वचन; पुललिंग और श्न्यपुरुष में रहती है। सामासिक शब्दों के लिंग अन्तिम शब्दों के अनुसार होते हैं । विशेषण के लिंग और बचन बिशेष्य के झललुसार होते हैं । विशेषण शब्दों ओर पूरफ़ शब्दों में अन्तर 'अच्छी तरह समक ऐना चाहिए | पूरक शब्दों के लिंग बचन उन्हीं के अनुसार होसे हैं । बह स्त्री अच्छी है । यहां अच्छी विशेषण है। इसका लिंग बचन, स्त्री की 'अनुलार हागा। वह स्री रानी है। यहां रानी पूरक है और उसका लिंग बचन उसी के अनुसार है। रघुबंश एक श्रण्छी रचना है। यहां रचना पूरक है 'और स्त्री-लिंग है यद्यपि रघुबंश पुल्लि'ग है। बच स्त्री क्षमा का पात्र है--कमा की पांच लिखना ' शलत है | रचा में साधारणुत: व्याकरण के थह्दी नियम काम में ते हैं घर इन्हीं में प्राय:भूले होती हैं। शब्दों के थे न जानने फे कारण भी उनके प्रयोग में भूले दोती हैं। नीचे लिखे शब्दों के अर्थ-मेद पर ध्यान देना, 'चाहिए--'सशात,




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