नागरीप्रचारिणी पत्रिका अर्थात प्राचीन शोधसंबंधी त्रैमासिक पत्रिका भाग - 14 | Nagaripracharini Patrika Arthat Prachin Shaudh Sambandhi Tremasik Patrika Bhag - 14
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'जायसी' का जीवन-चृत्त ड््स्फू
इस समय नहीं हो। सकती । मुसलमानों में यह वात विशेष रूप से
देखी जाती है कि वे अपना संबंध अ्रन्य देशों से हो स्थापित करना चाइते
हैं। जो वस्तुत: हिंदू से मुसलमान हुए हैं--भारतीय घंश-परंपरा
मे हैं--वे भी अपने के अरब झार हुर्क ही सिद्ध करते हैं। इस
संबंध मे दमे केवल इतना ही कहना है कि केवल मलिक शब्द के
श्ाधार पर दम यह नहीं कह सकते कि सलिक मुद्दम्मद जायसी के
पूर्च-पुरुप हिंदू से सुसलमान हुए थे। लाला साहब स्वयं स्वीकार
फरते हैं कि गोंडा तथा फैजाबाद में सलिक च्पाधिधारी झद्दीर हैं ।
मलिक शब्द का प्रयोग अन्यत्र किसा भी अर्थ में रद्दा हो, उससे
हमारा विशेष संबंध नहीं, भारत में ते उसका प्रयोग १९ या १९००
सिपाहियों के मालिक के लिये दी होता था । मलकाना मलिक शब्द
से मिन्न है। उसके श्राधार पर यद्द नहीं कद्दा जा सकता कि
मलिक उपाधिधघारी मुसलमान कभी दिंदू थे । श्राज भी बहुत से
हिंदू मलिक कहलाते हैं। इस शब्द को चौधरी शब्द की भाँति
उभयनिष्ट था खाँ शब्द को समकक्त समझना चाहिए, जिसका प्रयोग
कभी कभी दिंदुओं के लिये भी परंपरागत है। मलिक उपाधि
जायसी के सम्मान के लिये नहीं है, जैसा कि विनादकार
सानते हैं; यह उनकी बपाती है, उनके धंश के लोग सदा से मलिक
फहे जाते हैं ।
सलिक मुदम्मद जायसी वस्तुत: ज्ञायस के रहनेवाले थे । उनका
जन्म-त्थान भी जायस का कंचाना मुह्नप्ा दो दे । जायसी का
भ्रधे ही इस वात का प्रमाण था, फिर भी
हमने विपक्ष की संमीक्षा करते समय इस वात
को ८प्ट करने की चेष्टा की हैं कि जायसी का जन्म-स्थान अन्यन्न नहीं
घा, उनके मित्र भी नायस दी के रदनेवाले थे । श्रमेठी, जायस
थादि र्घानों में प्रसिद्ध भी यद्दी है । जायस में उनके घर का झव-
जापसी के धवशिष्ट
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