प्राकृत प्रबोध | Prakrit Prabodh

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Prakrit Prabodh  by डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आग है श ३ क्रिया की सद्दायता के बिना अनुवाद नहीं दो सकता है। यतः चाक्य का प्राण क्रिया दी है। वाक्य की परिभाषा में केवल क्रिया को भी बाक्य कहा है । प्राकृत के करियारूप संस्कृत की अपेक्षा बहुत सर हैं। प्राकृत में प्रायः भ्वादिगण की धातु ही हैं और अकारान्त घातुओं को छोड़कर शेष घातुओं में आत्मनेपदी और परस्मैपदी का भेद भी नहीं हैं । पाकृत में छकार नहीं होते । केवल बतेमान, भूत, भविष्य, विधि, आशा एवं क्रिया-क्रियातिपत्ति ये छः काछ के भेद माने गये हैं । ड्ं वतमानकाल के प्रत्यय एकक्चन बहुवचन प्रथम पुरुष ( प्रफ्तश्त फ8ा 500 ) इ, ए न्वि, न्ते, हरे मध्यम पुरुष ( 36000 फ8500 ) सि, से इत्था, इ उत्तम पुरुष ( हि 51 [6800 ) मिं मो, मु; म हे./भू-दोना धातु के वर्तमानकाल के रूप एकबचन बहुवचन श्र० पुर दोइ होन्ति, दोन्ते, दोइरे म० पु०.. होसि दोइत्या, दोद | दोमो, दोमु: दम हस-हंसना धातु के रूप एकव्चन बहुव्वन प्र० पु० हसइ हसन्ति, इसन्ते, दसिरे म० पु०.... इससि दसित्था; दसदद उ० पु० दसामि, दसेमि दसिसमो, इसिमु, इसिम पशधपडाक6 उ0/0 सिवातप वपाइयमासाएं अणुवायं करेन्तु बदिरा हँसता है । राम हंसता है । बादुढ बरसते हैं। राम का नौकर हँसता है । गोपाल के हाथ में पत्र है। आकाश में बादल हैं । लड़के हँसते हैं। केशव का तात्यत्र हैं । मोदन का कुंआ गाँव में है। इरिदर के कुछ का पानी मीठा है । चोर धन चुराता है। थोड़े जाते हैं। पद्ाढ़ ऊँचा है। बाराणसी गड्ा के तट पर स्थित है। लड़के मैदान में खेछते हैं ।




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