गाँधी साहित्य मेरे समिकलिन भाग ७ | Gandhi Sahitiya Mere Samkalin Vol.vii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
662
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अ्पूर्व थी । यह श्रक्षरण सत्य है कि वे जनता के म्राराध्यदेव थे, प्रतिमा
थे, उनके वचन हजारो श्रादमियोके लिए नियम ग्रोर कानूनसे थे । पुरुपोमे
पुरुप-सिह॒ससारसे उठ गया। केणरीकी घोर गर्जना विलीन हो गई 1”
श्रनुभूतिकी तीव्रता श्रीर वास्तविकताका श्रोर थी सदर चित्रण
उनके सस्मरणोमे हुमा है । घटनाओं श्रौर वार्तालापके द्वारा उन्होनें
व्य व्यक्तिकी वाहरी श्रौर झातरिक सुदरता-फुरूपताकी रेखाश्रोको
इस प्रकार उधार दिया है कि इसके पूर्ण परिपाकके साथ-साथ व्यक्तिका
सपूर्ण चित हृदयपर पत्थरकी लीक वन जाता है । कस्तूरवा गाबी, वाला-
सूदरम्, देगवघुदास, घोपाल वादू तथा बासती देवी श्रादिके सस्मरण इस
दुष्टिसि बहुत ही सुदर वने है
“में घोपालवादूके पास गया । उन्होंने मुभे; नीचेसे ऊपर तक देखा ।
कुछ मुस्कराये श्रौर वोलें “मेरे पास कारकूनका काम है । करोगे ?”
मैने उसर दिया--“जरूर करूंगा । श्रपने वस भर सबकुछ करनेके
लिए में झापके पास श्राया हू ।'
“नवयुवक, सच्चा सेवा-भाव इसीको कहते है ।”
कुछ स्वयसेवक उनके पास खंडे थे । उनकी श्रोर मुखातिव होकर
कहा-+ देखते हो, इस नवयुवकनें क्या कहा ?”
फिर मेरी श्रोर देखकर कहा, “तो लो यह चिट्ठियोका ढेर... देखते
हो न कि सैकड़ों भ्रादमी मुझसे मिलने श्राया करते है । भ्रव में उनसे
मिलू या जो लोग फालतू चिट्ठिया लिखा करते हे उन्हें उत्तर दू । इनमें
वहुतेरी तो फिजूल होगी, पर तुम सबको पढ जाना । जिनकी पहुंच लिखना
जरूरी है उनकी पहुंच लिख देना भ्रोर जिनके उत्तरके लिए सुभकसे पूछना
हो पूछ लेना ।”
उनके इस विद्वाससे मुभते बडी खुशी हुई । श्री घोषाल मुझे पहु-
चानते न थे । मेरा इतिहास जाननेके वाद तो कारकुनका काम देनेसे
उन्हे जरा धर्म मालूम हुई, पर मेसे उन्हे निश्चित कर दिया--“कहा में
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