गाँधी साहित्य मेरे समिकलिन भाग ७ | Gandhi Sahitiya Mere Samkalin Vol.vii

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gandhi Sahitiya Mere Samkalin Vol.vii by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

Add Infomation AboutVishnu Prabhakar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ना 5३ > अ्पूर्व थी । यह श्रक्षरण सत्य है कि वे जनता के म्राराध्यदेव थे, प्रतिमा थे, उनके वचन हजारो श्रादमियोके लिए नियम ग्रोर कानूनसे थे । पुरुपोमे पुरुप-सिह॒ससारसे उठ गया। केणरीकी घोर गर्जना विलीन हो गई 1” श्रनुभूतिकी तीव्रता श्रीर वास्तविकताका श्रोर थी सदर चित्रण उनके सस्मरणोमे हुमा है । घटनाओं श्रौर वार्तालापके द्वारा उन्होनें व्य व्यक्तिकी वाहरी श्रौर झातरिक सुदरता-फुरूपताकी रेखाश्रोको इस प्रकार उधार दिया है कि इसके पूर्ण परिपाकके साथ-साथ व्यक्तिका सपूर्ण चित हृदयपर पत्थरकी लीक वन जाता है । कस्तूरवा गाबी, वाला- सूदरम्‌, देगवघुदास, घोपाल वादू तथा बासती देवी श्रादिके सस्मरण इस दुष्टिसि बहुत ही सुदर वने है “में घोपालवादूके पास गया । उन्होंने मुभे; नीचेसे ऊपर तक देखा । कुछ मुस्कराये श्रौर वोलें “मेरे पास कारकूनका काम है । करोगे ?” मैने उसर दिया--“जरूर करूंगा । श्रपने वस भर सबकुछ करनेके लिए में झापके पास श्राया हू ।' “नवयुवक, सच्चा सेवा-भाव इसीको कहते है ।” कुछ स्वयसेवक उनके पास खंडे थे । उनकी श्रोर मुखातिव होकर कहा-+ देखते हो, इस नवयुवकनें क्या कहा ?” फिर मेरी श्रोर देखकर कहा, “तो लो यह चिट्ठियोका ढेर... देखते हो न कि सैकड़ों भ्रादमी मुझसे मिलने श्राया करते है । भ्रव में उनसे मिलू या जो लोग फालतू चिट्ठिया लिखा करते हे उन्हें उत्तर दू । इनमें वहुतेरी तो फिजूल होगी, पर तुम सबको पढ जाना । जिनकी पहुंच लिखना जरूरी है उनकी पहुंच लिख देना भ्रोर जिनके उत्तरके लिए सुभकसे पूछना हो पूछ लेना ।” उनके इस विद्वाससे मुभते बडी खुशी हुई । श्री घोषाल मुझे पहु- चानते न थे । मेरा इतिहास जाननेके वाद तो कारकुनका काम देनेसे उन्हे जरा धर्म मालूम हुई, पर मेसे उन्हे निश्चित कर दिया--“कहा में




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now