विधवा विवाह | Vidhava Vivah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.36 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ईश्वरचन्द्र विद्यासागर - Ishvarchand Vidyasagar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ईश्वरचन्द्र विद्यासागर । टः
दूकान करू'गा, किन्तु जिस नोकरी में सम्मान नहीं उसे नहीं
करूँगा |”. ख्राघीन वित्तताका इससे बढ़कर उउज्वल भादूश
क्या हो सकता है? इन दिनों विद्यासागर जी के संकछे भाई
दीनबश्घुको जो ४५०) रुपये मिछते थे उनसे कलकत्त के घरका
खचं चलता था विद्यासगरजीको पिता आदिकी सहायताके लिये
प्रतिसास ५०) रुपये ऋण लेने पड़ते थे । इस अवसरमें विद्या-
सागर जीने कई ग्रन्थ भी लिखे । इन्हीं दिनों अपने एक मित्र
भंग्रेज को संस्कृत बंगला भर हिन्दी सिखलाई। शिक्षा समाप्त
होनेपर अंग्रेज मित्र विद्यासागर को ५०) मालिक देना चाहते
थे। किन्तु ऐसे आर्थिक अभाव के समय में भी निरलॉंम ब्राह्मण
विद्यासागरने म्रित्रसे वेतन लेना स्त्रीकार त्हीं किया ।
नौकरी छोड़नेके बाद सन १८४८.६० तक विद्यासागरने कहीं
कोई नौकरी नहीं की। इस बीचमें फोटविलियम कालेजमें
हेड' राइटर का पद खाली होनेपर माशंल खादबके विशेष अनुरोध
करने पर विद्यासागरजीको यह पद स्वीकार करना पड़ा ; किन्तु
बहुत दिनो तक इस पद पर नहीं रहे ।
सन् १८४१ के प्रारस्ममेंद्ी संस्कृत कालेजके मंत्री और सह-
कारी मस्त्रीका पद जोड़ कर १५०) रुपये वेतनका एकही पद कर
दिया गया। इस पद पर विद्यासागर नियुक्त हुए । इस पद
पर नियुक्त होनेके साथ हो साथ विद्यासागर की अपनी भारी
जिम्मेदारीका खयाल हुआ ।
इस पद पर नियुक्त होकर विद्यासागरजीने सहसा एक बड़े
भारी आन्दोलन में हाथ डाला |
संस्क्ृत-कालेजमें उस समय तक केवल ब्राह्मण ओर कैद्योंके
लड़के ही शिक्षा पाते थे। विद्यासागरनीने प्रस्ताव किया कि
User Reviews
No Reviews | Add Yours...