श्रावक के तीन गुण व्रत | Shrawak Ke Teen Gun Vrat

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Shrawak Ke Teen Gun Vrat by जवाहिरलाल जी महाराज - Jawahirlal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न दिक्‌ तत खम्नेय, नैशऋत्य और वायन्य.हैं। जिस ओर सूये निकठता है, उस शोर मुँह करंके खड़ा ' रददने पर सामने की ओर पूव दिशा दोगी, पीठ की ओर पद्चिम दिशा होगी, बाये' हाथ की ओर उत्तर और दाहिने हाथ की शोर दक्षिण दिशा होगी । इसी तरह सिर की ओर ऊर्ध्व दिशा तथा पेर के नीचे कीं ओर अघः ( नीची ) दिदां दोगी । उत्तर तथा पूर्व दिशा के वीच के कोण को इंशान कोण कद्दा जाता है। पूर्व तथा दक्षिण दिशा के वीच के कोण को आग्नेय -कोण कहते हैं। दक्षिण और पदिचिम दिशा के वीच के कोण को लैनऋत्य कोण तथा पश्चिम और उत्तर दिशा के वीचे के कोण को .बायव्य कोण कहा जाता है। ये चारों कोण विदिशा फहठाते हैं स्मौर विदिद्ाओं का समात्रिश दिशाओं में भी हो जाता है । इन बताई गई दिशाओं में गमनागमन करने ( जाने श्राने ) शके सम्बन्ध में जो मयादा की जाती है, जो यदद निर्चय किया जाता है, कि में अमुक स्थान से अमुक दिशा में अथवा सब 'दिद्ाओं में इतनी दूर से अधिक न जाऊंगा, उस मयोंदा या निश्चय को दिकूपरिमाण श्रत कहते हैं । अय यदद देखते हैं कि दिकूपरिसाण घ्रत क्यों स्वीकार कियां “जाता है, और दिक्परिमाण श्रत स्वीकार करने से श्रावकों को क्या छाभ द्ोता है । श्रावक छोग जो पांच अणुब्रत--जो श्रावकों के मूठ ज्रत-हैं-स्वीकार करते हैं, उन ब्रतों पर. स्थिर रद कर




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