श्री जीतेन्द्र पुच कल्याणक पूजन (२४७७) | Shri Jitendra Puch Kalyanak Pujan(2477)

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Shri Jitendra Puch Kalyanak Pujan(2477) by भंवरलाल नाहटा - Bhanwar Lal Nahta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ८ ] करते हो ? भीछ ने कहा राजन्‌ ! यहाँ योगियों के आश्रम हैं, यदि वे मुझ पापी को देख लेंगे तो तत्काठ भस्म कर डालेंगे; परमात्मा की कृपा से आपकी अभिलापा पूरी हो, में जाता हूँ । ऐसा कह वह भी तो अपने स्थान चढा गया । अच्र राजा ने एक तापसों के आश्रम में प्रवेश किया जहाँ योगियों के से सिंह और हरिण एक साथ खेलते थे। उक्तंच-- “सारंगी सिंह शावं स्पृशति सुत घिया नंदिनी व्याघ पोत॑ । माजारी इंस बालें प्रणय पर केकि कान्ता अ्रुजंगं ॥। वेराण्या जन्म जाता न्यपि गलित मदा त्यज॑ंति । चले क ७ योगिनं मो” त्यक्तता साम्यक रूदं प्रशमित कलुष योगिनं क्षीण मोह” अथात्‌--जिन शान्त स्वभावी क्षीण मोहनीय कम वाले योगियों का आश्रय लेकर हरिणी अपने पुत्र की बुद्धि से सिंह के बच्चे से प्यार करती है। और गाय व्याघ्र के बच्चे से प्यार करती है। प्रेमबती मयूरी साँप से प्रेम करती है। आजन्म से बेर दाले प्राणी भी ढेष को त्याग कर परस्पर प्रेम करते हैं । उस आश्रम में आख्र, केठा, जंभी री, नारियल, सुपारी, इला- यची, लौंग आदि नाना प्रकार के बृद्च थे। पुष्प वाटिका ओर चन्दन बृक्तों की सुगन्घ से वह आश्रम देवों के नन्दन बन को भी जोतने वाला था । वहाँ फछ फूल आदि का भोजन कर के अपना निर्वाह करने वाले तापसों को देखा, वे एक सुन्दर बाखक को राजी कर रहे थे जो कि किसी नाराज हो गया था ।




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