मेघ मल्लार | Megh Mallar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
131
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्८ मेघ-मल्लार प
रानी मौन रही । झाड़-पेड़, पवत-पहाड़, नदी-लाछों ने चुपकी साध
--जीवबन-भर के छिए |
उठो बिजयिनी !” राज्ञा ने पुकारा ।
उसने स्वप्निठ आँखें फेरी ।
सखियाँ एक दूसरे की आर देखने छरगीं |
रानी की आँखों में बह कौन-सी मोहिनी झाँक रही हे ?'
रानी के ओठों पर बह कौन-सी हँसी छोट रही है !
बह प्रेम का प्रतिबिस्व है ।* राजा के कुँबर ने कहा ।
“अरे मूरख, छौट जा ।'
“आकर्षण करना उसने सीखा है, आकर्षित होना नहीं ।'
कितने आये, कितने गये ।
बीच भंवर में डूब कर सरे |?
में उनमें का नहीं हूँ सजनी !”
तुम जादूगर हो
'प्रकृति का जीवन हूँ में; पुरुष सुखद नाम, प्रेम और सष्टि मेर!
दूसरा नाम है । मेरे बिना तुम्दारी रानी सम्पूर्ण नहीं हो सकती
छाखों आये, छाखों गये ।' सखियाँ हँस पढ़ीं ।
. रूपनदी में बहते फिरे 1 .
. पयुग-युंगान्त तक प्यासे फिरे |”
_ 'हृठी, तू कहना मान ।'
_ मेरी बातें सुन दे कान ।
“हजारों आये; प्यासे गये ।
में दास्री हूँ तुम्हारी ।* रानी ने गढे का द्वार कुँवर को पहना दिया
तेरा पुजारी ।' उसने उस मोहिनी सो अपनी सब बाँहों में
खींच छिया । एफ
. प्रकृति खिलखिला पड़ी रानी के सिर पर । न.
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