मेघ मल्लार | Megh Mallar

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Megh Mallar by उषादेवी मित्रा - Ushadevi Mitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्८ मेघ-मल्लार प रानी मौन रही । झाड़-पेड़, पवत-पहाड़, नदी-लाछों ने चुपकी साध --जीवबन-भर के छिए | उठो बिजयिनी !” राज्ञा ने पुकारा । उसने स्वप्निठ आँखें फेरी । सखियाँ एक दूसरे की आर देखने छरगीं | रानी की आँखों में बह कौन-सी मोहिनी झाँक रही हे ?' रानी के ओठों पर बह कौन-सी हँसी छोट रही है ! बह प्रेम का प्रतिबिस्व है ।* राजा के कुँबर ने कहा । “अरे मूरख, छौट जा ।' “आकर्षण करना उसने सीखा है, आकर्षित होना नहीं ।' कितने आये, कितने गये । बीच भंवर में डूब कर सरे |? में उनमें का नहीं हूँ सजनी !” तुम जादूगर हो 'प्रकृति का जीवन हूँ में; पुरुष सुखद नाम, प्रेम और सष्टि मेर! दूसरा नाम है । मेरे बिना तुम्दारी रानी सम्पूर्ण नहीं हो सकती छाखों आये, छाखों गये ।' सखियाँ हँस पढ़ीं । . रूपनदी में बहते फिरे 1 . . पयुग-युंगान्त तक प्यासे फिरे |” _ 'हृठी, तू कहना मान ।' _ मेरी बातें सुन दे कान । “हजारों आये; प्यासे गये । में दास्री हूँ तुम्हारी ।* रानी ने गढे का द्वार कुँवर को पहना दिया तेरा पुजारी ।' उसने उस मोहिनी सो अपनी सब बाँहों में खींच छिया । एफ . प्रकृति खिलखिला पड़ी रानी के सिर पर । न.




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