जैन - लॉ | Jain - Law
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १५
है। इसी प्रकारकी शोर भी दानियोँ दे लो इसी समय दूर
को सकेगी जव जेन-छॉं रबतन्त्रताकों प्राप्त हो जायगा।
कुछ व्यक्तियॉंदा विचार है कि जेन-धर्म दिन्दू-धर्मकी
बाखा दै। भौर जैन-नीति भी दही दै जो दिन्दओंकी नीति
डै। यदद छोग जैनियोंदो धर्म-विमुख दिन्दू ( प़ाएतेंए
ताइ$टाटा5 ) मानते हू । परन्तु चास्तविकता सवधा इसके
'दिपरीत है ।
यह सत्य है कि दविन्दु-लों और जेन-ढॉं में झधघिझू समानता
है तो भी यदि आर्योका स्वतन्त्र कानून कोई हो सकता है तो
जेन-ढॉ दी हो सकता दै। कारण कि हिन्दू-घर्म जैन-धर्मफा
ख्रोत फिसी प्रकारसे नहीं दो सकता वरन् इसके विरुद्ध जैत-
धर्म द्विन्दू-धर्मका सम्भवत: मूल हो सकता है । क्योंकि द्िन्दू-
धर्म हौर लैन-धर्ममें ठीक चद्दी सम्बन्ध पाया जाता है जो
सिज्ञान भौर काव्य-रचनामें हुआ फरता दै। एक वैज्ञानिक है
दूसरा छलक्वारयुक्त। इसमेंसे प्चि फोन हो सकता ऐ छोर
पिछला कौन इसका उत्तर टामस फारलाइटक पथनानुसार यों
दिया जा सकता है कि विज्ञान ( 5तंघा८्८ ) का सद्धाध फाव्य-
रचना (हलुण्छ ) से पूत्र दोता
भाषार्ध--पद़िले विज्ञान दोता है और पीछे दाव्य-रचना 155
जनी छोग धघम-दिमुख हिन्दू ( 1िफितेण सहला टाई )
हे जि अप गए कसर ननन
छू देखो रचयिताकी बनाई हुई सिम्स पुरतकें ना
१. की आफ नालिज ( रिट एव कितएपात्त्एत हे २, या
थि ( िनटपंप्स पद) ४. पोनप्रलोएन्स सॉक सोपीडिट्स
(0००५० ० एऐफूण्छाएटड एच 1) सौर पिन्दू, उदाशी
साधु घाद्राचायकों रचिंद आात्मरामाबण तथा टिन्दू, पर्टिस दे नाराय!
साइरको रथित परमेनन्ट हिएट्री लॉर भारतदपप (एप पडता
सा 2ििक्ाहाभदत हद 3 1 ः
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