जैन - लॉ | Jain - Law

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Jain - Law  by चम्पतराय जैन - Champataray Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १५ है। इसी प्रकारकी शोर भी दानियोँ दे लो इसी समय दूर को सकेगी जव जेन-छॉं रबतन्त्रताकों प्राप्त हो जायगा। कुछ व्यक्तियॉंदा विचार है कि जेन-धर्म दिन्दू-धर्मकी बाखा दै। भौर जैन-नीति भी दही दै जो दिन्दओंकी नीति डै। यदद छोग जैनियोंदो धर्म-विमुख दिन्दू ( प़ाएतेंए ताइ$टाटा5 ) मानते हू । परन्तु चास्तविकता सवधा इसके 'दिपरीत है । यह सत्य है कि दविन्दु-लों और जेन-ढॉं में झधघिझू समानता है तो भी यदि आर्योका स्वतन्त्र कानून कोई हो सकता है तो जेन-ढॉ दी हो सकता दै। कारण कि हिन्दू-घर्म जैन-धर्मफा ख्रोत फिसी प्रकारसे नहीं दो सकता वरन्‌ इसके विरुद्ध जैत- धर्म द्विन्दू-धर्मका सम्भवत: मूल हो सकता है । क्योंकि द्िन्दू- धर्म हौर लैन-धर्ममें ठीक चद्दी सम्बन्ध पाया जाता है जो सिज्ञान भौर काव्य-रचनामें हुआ फरता दै। एक वैज्ञानिक है दूसरा छलक्वारयुक्त। इसमेंसे प्चि फोन हो सकता ऐ छोर पिछला कौन इसका उत्तर टामस फारलाइटक पथनानुसार यों दिया जा सकता है कि विज्ञान ( 5तंघा८्८ ) का सद्धाध फाव्य- रचना (हलुण्छ ) से पूत्र दोता भाषार्ध--पद़िले विज्ञान दोता है और पीछे दाव्य-रचना 155 जनी छोग धघम-दिमुख हिन्दू ( 1िफितेण सहला टाई ) हे जि अप गए कसर ननन छू देखो रचयिताकी बनाई हुई सिम्स पुरतकें ना १. की आफ नालिज ( रिट एव कितएपात्त्एत हे २, या थि ( िनटपंप्स पद) ४. पोनप्रलोएन्स सॉक सोपीडिट्स (0००५० ० एऐफूण्छाएटड एच 1) सौर पिन्दू, उदाशी साधु घाद्राचायकों रचिंद आात्मरामाबण तथा टिन्दू, पर्टिस दे नाराय! साइरको रथित परमेनन्ट हिएट्री लॉर भारतदपप (एप पडता सा 2ििक्ाहाभदत हद 3 1 ः




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