श्रद्धा, ज्ञान और चरित्र | Shraddha, Gyan Or Charitr

Shraddha, Gyan Or Charitr by चम्पतराय जैन - Champataray Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ श्रद्धा, शान और 'चरिघ्र वर एक ही उदाहरण से सर्व-ब्यापी नतीजा निकाल लेना भूल होगा ! (४) चौथी नय के सम्बन्ध में यह्द भुला देना घातक होगा कि चस्तु्ों का एक 'साधार है, और यद्द मान लेना कि एक घर के नाश होने फा मतलब पार्थिव सामग्री का सबधा नष्ट होजाना है । (५ पॉचवीं नय के विपय में यह न भुला देना चाहिये कि जब शब्दों का व्यवद्दार साधारण रूप में हुआ हो, तब उनका 'छलक्वारिक 'अथ नहीं लगाना चाहिये । “सूय पूर्व में उगता है”--इस सीधे-से वाक्य का यूढ़ाथ ढूँ ढना इसी प्रकार की रालती होगी । ६) छठी नय 'अलफ़ार के भाव से सम्बन्ध रखती है । शब्दों को 'अलंकृत रूप में प्रदश न करके शब्दार्थ में ले लेना तक का गला घोटना होगा । इसी तरह लझार के रूपक को ऐतिहासिक्र घटना सानना भयानक होगा । सही तरीके से वही सम्यक्‌- द्शन का पोपक होगा; अन्यथा नाश की ओर ले दौड़ेगा । पड) सातवीं -र '्रंतिम नय के विपय में यद्द कहना श्यनुचित होगा कि एक डाक्टर हर समय डाक्टर के सिंवाय छोर कुछ नहीं है । जैन-सिद्धान्त में हमें ऐसी गलतियों से ' पहले 'ही




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