पीयूष घट | Piyush Ghat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जाता है कि कही मेरे द्वारा देश काल का उल्लंघन न हो
जाए । मेरे सम्माननीय, सन्त लेखक श्री विजय सुनि जी की,
संभव है कहानियाँ लिखते समय यह धारणा रही हो कि
ये कथानक श्रमुक प्रकार के घटना श्रौर घात प्रतिघात के
क्रम से घार्मिकों के मन वाणी श्र सस्कारों का वेभव वन
गए है 1 श्रत: कल्पना के मिश्रण से उन की भावनाओं को
श्धात पहुँचेगा । परन्तु मुभे विन ्रता पूर्वक सुनिजी से कहना
है--ऐसी वात नहीं है एतिहासिक कहानी मे थी कल्पना
को श्रवकाण तो रहता ही है । थोड़ा-सा कल्पना
का पुट देकर कथा-णित्प को आर अधिक संवार कर,
सरसता लाई जा सकती थी | इतिहास की परिक्रमा करते
हुए भी यदि थोड़ा, कल्पना का मधु श्रौर घोल दिया जाता
तो हदय पाठको का मन, तन का भान भूल कर
कहानी गत पाव्रोके सुख दुख को श्रपना सुख दुख
सममकर पढ़ने मैं रमता ! जिन्हें ठेस लगती उन्हें लग
जाती उनकी रक्षा भीतो प्राखिर कहाँ तक होगी!
पुराना पन तो दफनाने के लिए ही है। जव तक जान लेवा
जर्जर-हवेलियां नहीं गिरेगी तब तक नव निर्माण श्रौर नव
सर्जन कंसे--होगा ?
. प्रस्तुत संग्रह की श्रनेक कहानियों का मेरे हृदय पर स्थायी
प्रभाव है । सुभद्रा की घर्मं निष्ठा की नैतिक जीत ने मुभे
काफी प्रभावित किया | मैंने जहाँ झ्न्य कहानियों के
णीर्पक कदने वहं जीत गच्द पर् ही ५- थीर्पक रग्व
टिए है। जेसे 'देव हारा मानव जीता' विप हारा श्रमृत
जीता थे गाता ज
ता” “गाता की ममता जीत गई रादि)
बे
चर
~> शरन अ क. विय है न स्न साद्व च वृस्यय ट्
पांच : ग्ररनु पाठकों कॉपी विजय सुनि जी को हार्टिक धन्यवाद
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