ठण्डा लोहा तथा अन्य कविताएँ | Thanda Loha Aur Anya Kavitayai

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Thanda Loha Aur Anya Kavitayai by धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उदास तुम तुम कितनी सुन्दर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास ज्यो किसी गुलाबी दुनिया में सुने खरडहर के आसपास मदसरी चॉदनी जगती हो / सह पर ढँक लेती हो आँचल ज्यों दूब रहे रवि पर बादल या दिन भर उड़ कर धकी किरन सा जाती हो पोखे समेट ऑआँचल मे अलस उदासी बन / दो भूले भटके साध्य-विहग पुतली में कर लेते निवास / तुम कितनी सुन्दर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास / खारे आधू से घुले गाल रूखे हल्के अधखुले बाल बालों मे अजब सुनहरापन सरती ज्यों रेशम की किरने संका की बदरी से छुन छुन / मिसरी के होठों पर सूखी किन अरसानों की विकल प्यात / तुम कितनी तुन्दर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास / १४




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