अनेकान्त | Anekant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राकृत एवं अपभ्र श भाषा मे सुलोचना चरित
जैन साहित्य में चरित काव्यों की प्रघानता दै)
मानव-जीवन को विभिन्न सांस्कृतिक मूल्यों से साथक
करने की दिशा में जो भी व्यक्ति पुरुष अथवा नारी अपने
जीवन को लगा देते हैं उनके चरित को अमर रखने के
लिये जंन कवि अपनी लेखनी चलाते रहे हैं यही कारण
कारण है कि तीर्थकरों के जीवन के अतिरिक्त अन्य महा-
पुरुषों एव महासतियों का जीवनचरित काव्य का विषय
बना है । जेन साहित्य में स्त्री पात्र प्रघान रचनाएं भी
पर्याप्त मात्रा में लिखी गई है । उनमे सुलोचना चरित
प्रचलित कथानक है । यह कथानक प्राकृत अपभध्रश एवं
संस्कृत भाषाओं में विकास को प्राप्त हुआ है ।
प्राकृत सुलोचना चरित :
सुलोचना कथा भाठवीं शताब्दी के पूर्व इतनी प्रसिद्ध
थी कि तात्कालीन प्राकृत संस्कृत एवं अपभ्रश के प्रतिष्ठित
कवि अपने ग्रन्थों में उसका उल्लेख किये बिना नहीं रहे ।
प्राकृत चम्पू काव्य कुवलयमाला के लेखक उद्योतन सूरि
ने सुलोचना कथा का इस रूप में स्मरण किया है--
“जिसके द्वारा समवसरण जेसी जिनेन्द्र देवों से युक्त
भौर धर्मकयाबन्ध को सुनकर दीक्षित होने वाले राजाओ
(पृ० १२ का शेषाश)
के प्रात समाज उदासीन है। समाज पर अनेक जिम्मे-
दारियां हैं। देव, शास्त्र और गुरु को रक्षा एवं संवर्धन
उसका प्रमुख कत्तव्य है । दसकं लिए अब युवा पीढ़ी को
अब भगे माना चाहिये । उसे इस अनमोल धरोहर की
सुरक्षा के थिये क्रान्तिकारी कदम उठाने का संकल्प करना
चाहिये । युवापोढ़ी को समाज के अनुभवी बुजुर्गों, विद्वानों
और साधु संस्था का विशेष मागेदशेन मिलना चाहिये ।
यही नेरा नमन निवेदन है ।
--प्राङृत एवं जेनायम विमाग,
सम्पुर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी
] श्रोमती कल्पना जन, शोध छात्रा
से युक्त अच्छी तरह से कहने योग्य सुलोचना नामक कथा
कही है (उस कवि को नमस्कार है)”--
संपिहय--जिणर्वारिदा धम्मकहा-बंघ-दिविखय-परिदा ।
कहिया जेरा सकहिया सुलोचरणा समवसरणं य ॥।*
कुवलयमाला के सुलोचना के इस उल्लेख से यह तो
ज्ञात होता है कि प्राकृत मे सुलोचना कथा नामक यह
ग्रव्थ काव्य-गुणो से युक्त रचना रही होगी किन्तु इसका
कवि कौन था इसका उल्लेख इस सन्दर्भ में नही है । डा.
ए. एन. उपाध्ये ते इसका कवि हरिवष को माना है और
पण्डित दलसूख भाई मालवणिया कवि प्रभन्जन को इस
कथा का कर्ता मानने का सुभाव देते है' । किन्तु प्राकृत
की यह सुलोचना कथा अभी तक किसी प्रत्थ भण्डार से
उपलब्ध नही हुई है। अतः इसके सम्बन्ध मे अधिक कुछ
नहीं कहा जा सक्ता ।
प्राकृत सुलोचना कथा के सन्बन्धमे एक सन्दर्भ देव-
सेनगणि की अपश्नश रचना “सुलोचणाचरिउ ” में भी
प्राप्त होना है जिसमे कहा गया है कि कृन्दकुन्दमणि के
द्वारा प्राकृतगाथधाबद्ध सुलोचना चरित को इस प्रकार से
मैं (देवसेनगणि) पद्धडिपा आदि छत्दो मे (अनुव द) कर
रहा हं किन्तु उसे कोई गूढ अथं प्रदान नही कर रहा हूं--
जं गाहा-बंधे भ्रासि उत्त
सिरि कंवकद-गणिरा णिरत्तु ।
तं एव्वहि पवडिर्याह करेमि,
परि कि पिन गूढउ भ्त्थु देमि ॥
देवसेनगणि के इस उल्लेख पर विद्वानों ने कोई विशेष
ध्यान नह्दीं दिया है । क्योकि कुन्दकुन्दगणि की जो प्राकृत
रचनाए अभी तक उपलब्ध हुई है उनमे सुलोचना चरित
सम्मिलित नहीं « । प्राकृत सुलोचना चरित के ये दोनों
उल्लेख इस संभावना को बनाये हुये हैं कि प्राकृत की
सुलोचनाचरित रचना प्राचीन समय में प्रचलित थी ।
संभव है, कभी इसको प्रति उपलब्ध हो जाये ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...