सत्ता और व्यक्ति | Satta Aur Vyakti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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् सत्ता श्रौर व्यक्ति जातियों के श्नष्ययन से जो श्राज जीवित है, यह्‌ पता चलता रै कि श्रदिम मनुष्य छोटे-छोटे समुदायों में रहा करते थे | ये समुदाय श्राकार मै परिवार से विशेष बड़े नहीं थे--इनके सदस्यो की संख्या यही पचास श्रौर सौ के श्रंदर रखी जा सकती है | प्रत्येक समुदाय कै अंदर सहकारिता की श्रव्यंत प्रबल प्रवर्ति रही होगी, किंतु बाहर के किसी समुदाय से मुठभेड़ होने पर या - संसर्ग के कारण प्रतिद्वंद्धिता भी रही होगी । जब तक मनुष्य एक विरल प्राणी था श्रौर उसकी संख्या कम थी, तब तक समुदायों का परस्पर संपकं कम ही था और उनमें मुठभेड़ के श्रव्तर मी कम श्रते थे | प्रत्येक समुदाय के पास श्रपनी-श्रपनी भ्रूमि थी श्र कमी आ्रापस में उनके कगड़े हुए भी तो सीमान्तों पर । उन दिनों विवाह सम्बन्ध समुदाय के श्न्तगत ही होते होंगे । इस झांतरिक संसग के कारण यदि किसी समुदाय की संख्या बढ़ गई श्रौर उनकी भूमि उनके लिए पर्याप्त नहीं रही, तो पास-पड़ोस के समुदायों से स्वभातः उनके भकगड़े होने लगे होंगे । जिस समुदाय की संख्या अधिक रही होगी विजय भी उसकी निश्चित सी रही होगी, कारण उन दिनों सदस्यो की संख्या पर ही प्रायः हार-जीत निर्भर थी। सर शआ्मर्थर कीथने उन तथ्यों को श्रवयेत सुचारु स्पसेर्खाहै। यह तो स्ट दै, हमारे पूजो के पास कोई निश्चित नपी-तुली रीति-नीति नहीं थी । एक प्रकार की यात्रिक आआत्म-प्रेर्णा उनके सारे कार्य-व्यापारों को संचालित




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