सत्ता और व्यक्ति | Satta Aur Vyakti
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
185
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)् सत्ता श्रौर व्यक्ति
जातियों के श्नष्ययन से जो श्राज जीवित है, यह् पता चलता रै
कि श्रदिम मनुष्य छोटे-छोटे समुदायों में रहा करते थे | ये
समुदाय श्राकार मै परिवार से विशेष बड़े नहीं थे--इनके
सदस्यो की संख्या यही पचास श्रौर सौ के श्रंदर रखी जा सकती
है | प्रत्येक समुदाय कै अंदर सहकारिता की श्रव्यंत प्रबल प्रवर्ति
रही होगी, किंतु बाहर के किसी समुदाय से मुठभेड़ होने पर या -
संसर्ग के कारण प्रतिद्वंद्धिता भी रही होगी । जब तक मनुष्य एक
विरल प्राणी था श्रौर उसकी संख्या कम थी, तब तक समुदायों
का परस्पर संपकं कम ही था और उनमें मुठभेड़ के श्रव्तर मी
कम श्रते थे | प्रत्येक समुदाय के पास श्रपनी-श्रपनी भ्रूमि थी
श्र कमी आ्रापस में उनके कगड़े हुए भी तो सीमान्तों पर ।
उन दिनों विवाह सम्बन्ध समुदाय के श्न्तगत ही होते
होंगे । इस झांतरिक संसग के कारण यदि किसी समुदाय की
संख्या बढ़ गई श्रौर उनकी भूमि उनके लिए पर्याप्त नहीं रही, तो
पास-पड़ोस के समुदायों से स्वभातः उनके भकगड़े होने लगे होंगे ।
जिस समुदाय की संख्या अधिक रही होगी विजय भी उसकी
निश्चित सी रही होगी, कारण उन दिनों सदस्यो की संख्या पर
ही प्रायः हार-जीत निर्भर थी। सर शआ्मर्थर कीथने उन तथ्यों
को श्रवयेत सुचारु स्पसेर्खाहै। यह तो स्ट दै, हमारे पूजो
के पास कोई निश्चित नपी-तुली रीति-नीति नहीं थी । एक प्रकार
की यात्रिक आआत्म-प्रेर्णा उनके सारे कार्य-व्यापारों को संचालित
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