सीधी चढान | Seedhi Chadhan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी - Kanaiyalal Maneklal Munshi
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मंजुला वीरदेव - Manjula Veerdev
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बस्बई की गलियों सें १६
हुई इटों पर पैर रखकर गली पार करनी पडती थी ¦
कोलाहल-पू्ण इस जन-समृह के श्रावास में; ऊपर की मंजिल
वाले, निप्वली मंजिल वालों के कानों में सारा दिन “नल बन करो” की
त्ावाजें पहुंचाते रहते थे } नीचे से कच्चे आम बेचने वाले ऊपर वालों को
सुनाने के लिटः च्रावाज लगाते-“ पायरी श्राकूस,” इसके जवाब में दम
कहते-'“बंरी डफ्फूस” (ख्रियों को खाने वाले) श्र मुँह में आराम का स्वाद
लेते थे |
मैं बीमारी से उठा था | मैं हवा और रोशनी से भरपूर हवेली में पला
हुश्रा--तापी बहन का लाड़ला था, इसलिए मामी-मामाओं ने मेरे लिए,
जो कुछ हो सकता था, किया । झपने लड़कों से भी श्रधिक सुविधाएं दीं,
जो लञ्जावश मुभे स्वयं श्स्वीकार करनी पड़ीं |
थोडे दिनों बाद् एल. एल. वी. मे पहने बलेटो पित्रौंके साथ
मिलकर मेने निश्चय करिया कि हम तीनों कमरा लेकर इकट्ठे रहें । हम
तीनों कमरा तलाश करने के लिए निकले | जहां जते, वहीं प्रन होता था-
“स्त्री है क्या ?” ““खटला हाय का ?” और हमारे “नहीं” कहते ही हमें
कोरा जवाब मिल जाता था । “हम अच्छे ञ्राद्मी हैं”-हमारे इस प्रमाणपत्र
की उनके लिए कोई कीमत नहीं थी । मेरे पुराने मास्टर की बात सच
थी-''स्त्री-हीन पुरुष विश्वसंनीय केसे हो सकता हे ?””
अन्त में कांदावाड़ी में 'कानजी खेतसी” की चाल में “भैया” (चॉकी-
दार) की मनाही की झवहेलना करके हम ट्रस्टी के पास पहुंचे, जो वहीं बेटे
हुए: थे | ट्रस्टी ने मेरा नाम सुनकर पूछा-'“डाकोर में जो झघुभाई मुन्शी थे,
उनके तुम कोइ सम्बन्धी होते हो?”
“हां, मैं उनका मतीजा हूँ,” मैने कहा |
““मेयाजी,”” ट्रस्टी ने श्राज्ञ दी, ““इनकों श्रच्छी खोली (कमरा) दो ।””
उन्हीं चालों का एक शिनि मै द्रस्य चनूगा, इसकी कल्पना मैंने
उस समय स्वप्न मैं भी नहीं की थी |
हमने जो कमरा लिया, उसके पास ग़रीब वग॑ के मारवाड़ी रहते थे |
१ श्राधे रास्ते, पृष्ट १४९.
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