कर्ण | karan

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karan by गोविन्द दास - Govind Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपक्रम € हो रहे हो * रगमच तो सबके लिए है, फाल्गुन, फिर मेने श्राज्ञा लेकर अपने कृत्य दिखाये हे । [ पुन्ती कॉप उठती हू । युघिप्ठिर का मुख चिन्ताग्रस्त हो जाता हैं। भीम रुग्घे पर की गदा सेंभातता है । दुर्योधन कर्ण का कर्घा थप- थपाता है । प्रेस-गण प्रत्यघिक घ्राठुरता से दोनो; की श्रोर देखते हे । ] फप--(भ्नाये दढकर) ठहरो, भर्जुन । (भ्रजुंन रुक जाता है। णर्ण से) दीरवर, इन्द युद्ध के कु निश्चित नियम है । वह केवल बराबरी बालों में हो सकता हैँ । श्र्जुन महाराजा पाडु और पृथा के तृतीय पुत्र € । उनका जन्म क्षत्रिय वर्ण के प्रस्यात कुरुवशा में हुआ है । तुम भ्रपने माता-पिता का नाम बताश्रो । किस घर्ण में, किस वद्य में तुम्हारी उत्पत्ति एरं हैं, यह कहो । इसके परचात्‌ निर्णय हो सकेगा कि अर्जुन का श्र तुम्हारा रद युद्ध हो सकता है या नही । पार्ण--(गर्द से) वर्ण श्रौर वन ! माता-पिता का नाम ' वर्णों £ न ता इन्द होता है, या श्रजुन का और मेरा, श्राचार्य ? भेरी दृष्टि से तो भाप भ्रजुन के वर्ण, वश श्रौर माता-पिता का विवरण कर, अर्जुन का उत्टा अपगान कर रहे हैं । उन्हे गे होना चाहिए भ्रपना भ्रौर श्रपने पौरुप त11 सम हो देवादीन हैं, भावाय, हें, पोर्प स्पय के आ्राघीन है । मुझे थपने बूल यामल्गय देने वी ्रावय्यकता ही नहीं, वह मेरे हाथ में नहीं 1 का हास मे रे मेरा पौरुप, तथा मेरा पौरुप ही मेरा सच्चा परिचय है। दि पण भ्गोर बरा को महत्त्व है, तो वह तो भूतकाल को महत्त्व देना हुभ्रा । र व मो महतत जग मे यदि चपने प्य पीते दल कं है» ७ १५ वा यदि चपने धर्ते गेल का गयें है, तो मुझे हे चर्तमान एव भविष्य सा । में धरना दर दवाऊंगा, भ कं गुट मो बगरत अपना दर्ण वनाऊँगा । श्राचायं, भें लिन कि के हर अमिद्ध भौर प्रतिप्ठित नहीं होना चाहता, मेरे “ न २ रे दर यणस्यी होगे । ( दर्प पी रना से रगशाला प्रा हा नीला प्रतध्दसित उठतौ है देर पे राटा सा हा प्रा के ऐ त्वरित हो उठती है। कुछ दे लगा हूं |




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