सम्पत्ति - शास्त्र | Sampatti Shastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
44 MB
कुल पष्ठ :
406
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९ भूमिकी 1
यदि किसी के देष दिया जा सकता है तो उन्हीं को दिया जा सकता हैं
जा इस शाख का अच्छा ज्ञान रखकर भी उससे ग्रपन दश-माह्यां का कृच
भी लाभ पहुँचाने का यन्न नही करते । जब याम्य जन श्रपने कत्य का
पालन करने लगेंगे तब अयोग्यों को उनके सामने कुलम उरान क्रा कभी
साहस ही न होगा । जव तक हिन्दी का सीभाग्योदय न हा--जष तक
हमारे उच्च शिक्षा प्राप्त सजन हिन्दी को अनादर की दृष्टि से देखना बन्द न
करे'--तब तक अल्पज्ञ, भ्रयाग्य, अशिक्षित श्रथवा श्द्धशिसतित लोग, किसी
प्रकारं का कहीं से श्रयल्प उत्साह न पाकर थी, यदि हिन्दी में सम्पत्तिशास्त्र
की तरह के गहन शाख्रीय विषयों पर लेख लिखने की ढिठाई करें, सा उन
पर खड़पाशि होना न्याय्य नहीं ।
हम जानते है--हमे विश्वास रै, श्रैर पूरा विश्वास है--कि इस पुस्तकं
में हमसे अनेक त्रुटियाँ हुई होंगी; इसमें अनेक दाष रह गये होंगे; इसमें
प्रनेक बाते' हम कुछ की कुछ लिख गयं होंगे । पर हम उनके लिए समा
नही मांगते । श्रपनी श्रयोग्यता को जान कर भी जब हमसे ऐसे काम में
हाथ डाला, तब त्मा मांगने से मिल भीता महीं सक्ती । कमाने मागन
का एक कारण श्रौर भी है । बह यह कि हमारी त्रटियां से हमारी प्यारी
हिन्दी को कुछ लाभ पहुँचसे की आशा है । संभव है, उन्हें दख कर किसी
योग्य विद्वान् को हिन्दी पर दया अवे, शरीर उसके उदारहदय में सम्पत्ति-
शास पर एक निर्दोष, निर्धान्त श्र निरुपम पुस्तक लिखते की इच्छा उत्पन्न
हा । यदि हमारी यह संभावना, कभी किसी समय, फलीभूत है जाय ता
हैस समभे गे कि हमारी इस त्रुटिपरिपू्ण पुस्तक ने बदा काम किया ।
जुद्दी, कानपुर पद
१५ दिसम्बर १६०५७ महाबीरप्रसाद् द्विवेदी ।
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