अमेरिका दर्शन का इतिहास | Amerika Darshan Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपनिवेश-कालीन श्रमरीका मे प्लेटोवाद श्रौर श्रनुभववाद हट हॉन्स का भी यही उत्तर होता । फिर भी, ये नागरिक या प्रसविदात्मक स्वतन्त्रताएँ श्रघिकाधिक सामने श्रायी । जान वाइज ने शुद्धतावादी हष्टि का भेद खोल दिया । जव उन्होंने दर्शित किया कि श्रगर मनुष्य की नैतिक श्रधमता का विचार छोड दिया जाए' तो ईसाई स्वतन्त्रता' के प्रसविदात्मक धर्मशास्र के समकक्ष धर्मं-निरपेक्ष सामाजिक-्रनुवन्ध के सिद्धान्त को, जैसी पुफेनडॉफ ने उसकी व्यास्या की थी, रखा जा सकता था । भ्रप्टता की चेतना के क्रमक ह्लास श्रौर श्रग्रेज व्यापारिकता के विरुद्ध बढती हुई खीक के साथ-साथ लॉक के 'निवन्धो' ( ट्रीटाइजेज ) का न्यू-इगलेड मे श्रधिकाधिक स्वागत हुआ श्र श्रन्तत विद्रोह का श्रीचित्य सिद्ध करने के लिए उनका उपयोग किया गया | सामाजिक सिद्धान्त के साथ जो बात हुई वही प्राकृतिक दर्गन के साथ भी हुई । कैस्थ्रिज का प्लेटोवाद न्यूटन के विज्ञान के उदय के साथ निकट से सम्बद्ध था श्रौर जब १७०० के लगभग वेकन, न्यूटन श्रौर लॉक की रचनाएँ न्यू-इगलेड में उपलब्ध हुई, तो उन्होंने शीघ्र ही रेमुसवादी ग्रत्थो की पुरानी पड चूकी भोतिकी श्रौर खगोल-विद्या का स्थान ले लिया । प्रेम का पवित्नरतावादी सिद्धान्त शुद्धतावादी चचं-नगरो की पूर्ण स्थापना होने के पहले हो उनमे पवित्रतावादियों के व्यक्तिवादी समूह घुस झ्राये, जिन्हें धमंगाख्री श्रामतौर पर केवल “विप्रतिपेघवादी”--धघामिक . श्रराजकतावादी कहते थे, श्रौर श्रपनी सामुदायिक झास्था का पूर्ण नकार मान कर जिनसे भय खाते थे । पहले _ववैकर * शौर शनावैप्टििट व लोग आये, फिर मेथॉडिस्टरं । ये सभी 'उत्साह' ₹. पायटिदस--प्रोटेस्टेन्ठ सस्प्रदायो में श्रद्धा, शुचिता, या सावनात्मक्ता की वृद्धि के लिए सन्नहवी दाताब्दी से श्रारम्भ श्रान्दोलन [--श्रनु० २ जाजं फाक्स द्वारा सन्नहवीं इाताब्दी के मध्य में स्थापित मत जिसका वास्तविक तास 'मित्र-ससाज” है । इनके सुख्य सिद्धान्त हैं--भाषा-भूपा की सादगी श्रोर शान्तिमय श्राचरण ।--भनु० रे, शैदावकालीन बपतिस्सा की वेघता श्स्वीकार करने के कारण पुन बपतिस्मावादी कहलाते है । प्रोटेस्टेन्ट सुधारवाद की एक पराक्ाप्ठा पूर्ण शाखा । ये निजी श्रास्था श्रीर समानता को मानते हैं । यह श्रार्दोलन मुश्यत जमंनी में चला जहां इसके समथंको ने कई विद्वोह सी किये !--श्रचु० ४. सोटे तौर पर धमं-सदेशवादियो के लिए प्रयुक्त ।--शनु०




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