वीर पूजा | Veerpuja
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६. था पहला अडदू
$ ष्टे
--वड़ा उर खगता है | मैं तुम्दारे पास रहूं पिताजी, तो फिर छुछ
डर तहं रहेगा ।
रद्गनाथ- नदीं वेशौ ! घरके भीतर जाओ । तुम्हारे दीना-
नाथ तुम्हारी रक्षा करेगे ।
` ( वाखन्तीका प्रस्थान )
रटुनाथ (खगत) देखता हं, यह मायामयी वालिका धीरे.
धीरे सुभे वन्धने वधर है| अव अके मेरे प्यार ओर
आदस्से उसे वृति नदय होती, माँको खोज रही है। ओप !
रक्षमी ! तुग्दारे पिताने क्यों मेरे शन्रू का साथ दिया । नहीं
तो आज तुम इस चालिकाकों माताके स्नेहसे निहाल फर देतीं ।
तुम कहोगी, “उसमें मेरा दोष कया था ?--दोप पिताका था” |
दोप--महादोप है, तुम रघुज्ीकी कन्या हो, यही तुममें महा-
दोप है।
( कासिमका प्रवेश )
कासिम--आदाव राजा साहब ! अमी आप किससे वाते
कर रहे थे? चह ओौरत सुभे घाते देखकर भाग गई-वदह् कौन है?
` रद्भुनाथ -वहं एक क्षत्रिय धरनेकी अनाथ लड़की है !--
चचपनसे मेरे हौ पाख रटती है-ु पिता करती है ।
क़ासिम--हैं, औरत तो वहुत खूबसूरत जान पडती है ।
आप चाहें तो उसे किसी बहुत बढ़े अमीर उमसाचकी चीवी वना
दे सकते हैं। आपके अपर मेरी बहुत मेहरवानी है। आप
काफिर हैं; फिर थी में आपको अपना दोस्त समकता हूं! *
४
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