वीर पूजा | Veerpuja

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Veerpuja by पं रूपनारायण पांडेय - Pt Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६. था पहला अडदू $ ष्टे --वड़ा उर खगता है | मैं तुम्दारे पास रहूं पिताजी, तो फिर छुछ डर तहं रहेगा । रद्गनाथ- नदीं वेशौ ! घरके भीतर जाओ । तुम्हारे दीना- नाथ तुम्हारी रक्षा करेगे । ` ( वाखन्तीका प्रस्थान ) रटुनाथ (खगत) देखता हं, यह मायामयी वालिका धीरे. धीरे सुभे वन्धने वधर है| अव अके मेरे प्यार ओर आदस्से उसे वृति नदय होती, माँको खोज रही है। ओप ! रक्षमी ! तुग्दारे पिताने क्यों मेरे शन्रू का साथ दिया । नहीं तो आज तुम इस चालिकाकों माताके स्नेहसे निहाल फर देतीं । तुम कहोगी, “उसमें मेरा दोष कया था ?--दोप पिताका था” | दोप--महादोप है, तुम रघुज्ीकी कन्या हो, यही तुममें महा- दोप है। ( कासिमका प्रवेश ) कासिम--आदाव राजा साहब ! अमी आप किससे वाते कर रहे थे? चह ओौरत सुभे घाते देखकर भाग गई-वदह्‌ कौन है? ` रद्भुनाथ -वहं एक क्षत्रिय धरनेकी अनाथ लड़की है !-- चचपनसे मेरे हौ पाख रटती है-ु पिता करती है । क़ासिम--हैं, औरत तो वहुत खूबसूरत जान पडती है । आप चाहें तो उसे किसी बहुत बढ़े अमीर उमसाचकी चीवी वना दे सकते हैं। आपके अपर मेरी बहुत मेहरवानी है। आप काफिर हैं; फिर थी में आपको अपना दोस्त समकता हूं! * ४




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