महामारिका विवेचन | Mahamarika Vivechan

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Mahamarika Vivechan by पं. मुरलीधर शर्मा राज वैद्य - Pt. Muralidhar Sharma Raj Vaidya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महंमारीका विवेचुन । (११) आदि ) मे बहत जर्चर हो अथवा एकवारदी स्व , नए रोजावे या उन जखाश्चयोका जर सुखकर थोडा रहजाने पर्‌ काममे छाया नावे था नर प्रिय नदी ठगे या उप्तके गुण (अन्न पचाना तृषा शाति करना आदि ) जति रहै ॥ देशंएनः प्रकृतिविकृतिव्णेगधरसस्पशं क्लेदबडलसुपसंसषप्टसरीसपव्यालमशक- शलभमक्षिकागपकोटुकरमाशानिकश- कुनिजम्ुकादियिस्त्रणाटुपोपवनर्वतं प्रतानादिवहृलमपूरवेवद्नपतितञ्चष्कन- शस्यं धूम्रपवनप्रश्म॒तयत्‌ निगणसु त्कृषएटश्चगणञद्रतव्युयितविविधममप क्षिसघसत्छष्टानष्टषमसत्यलनाचारण- जनपदं शश्ल्ुमितोदीणसटिलः शयप्रततोस्कायातनिषातभूमिकम्पमः तिभयारावरूपं रुक्षताभ्रारुणसिताम्रना छसंदृताकचन्द्रतारकमभीक्ष्णसम्भ्रमो- दरगमिवसासरुदित्मिव समस्क्मिव हयकाचरितमिवाक्रंदितंशब्दवहरंविद्यात्‌॥




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