स्वभाव बोध मार्तण्ड | Sawbhav Bhodh Martand (1946) Ac 956
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
325
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१९)
की पुडिया अथवा कपेकी प्रानी चर, यह अपने अस्थिर
स्वभावो प्रगट करती है । पर मूर्ख लोग इसस खेद रूगाते
हैं, यह सुखकी घातक और बुराइयोंकी खानि है । इसहके
प्रेम और सगतिसे हमारी बुद्धि कोल्दूके बेठके समान
संसारमें चक्कर लगाने वाली हो गई है । इस प्रकारके
धिनाबने शरीरको दखङरभी तुम्दे अपन आत्म कल्याण
करनेमें रुचि क्यों नहीं होती है ? और भी कहत हैं सो
सुनो-सबस पहेठे मनुष्यको एसो चिंतवन करना चाहिये
कि-य शरीरकी छाया तो अपनीही है। जब तुम अपनीही
छाया पर मुग्ध होकर उसके पीछे पीछे दौडोगी तब वह
छाया तुम्हरे हाय तो न आवेगी प्रत्युत बह आगे आग भागी
ही चली जा्वेगी । जब तुम्हारा ये विचार दो जावेगा कि
हमें इस छायांस कोई प्रयोजन नहीं है, उसका पीछा छोड
कर पीछा लौटकर आने लगोगे तब वहीं छाया तुम्हार
पीछे पीछे स्वयमेव दौड़ी आवेगी । उसी तरह हम जिस
समय इन पर पदार्थाकों प्राप्त करनेके लिये इनके पीछे २
दौडेमे तब ये पदार्थं हमसे द्र २ दही भागेंगे जब हम
इनका पीछा छोड देंगे तो ये हमारे पीछे दौडेंगे । विचार
इतना ही होना चाहिये कि हमें इन पदार्थोके पीछे दौड़ने
पर और इनक मिलजाने पर भरी ये हमारे बयकर रह सद्ग
या नहीं! पुण्य; पापके उदयानुसार दही इनका संयोग
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