स्वभाव बोध मार्तण्ड | Sawbhav Bhodh Martand

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Sawbhav Bhodh Martand by मुन्नालाल काव्यतीर्थ - Munnalal Kavyateerth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१२) की पुड़िया अथवा कपड़ेकी एरानी चहर, यह अपने अस्पिर स्वभावको प्रगट करती हे। पर मूर्ख छोग इससे खेद लगाते दै, यह सुखकषी घातक ओर बुराह्योकी खानि है । इस्हीके प्रेम ओर समगतिसे हमारी बुद्धि कोटे बेरे समान संसारमें चक्कर लगाने वाली हो गई है । इस प्रकारके घिनावने शरीरकों दखकरभी तुम्दे अपन आत्म कल्याण करनेमें रुचि क्‍यों नहीं होती है ! और भी कहते हैं सो सुनो-सबस पहिले मनुष्यको ऐसा चिंतवन करना चाहिये कि-य शरीरकी छाया तो अपनीही है, जब॒ तुम अपनीदी छाया पर मुग्ध होकर उसके पीछे पीछे दौडोगी तब वह छाया तुम्हरे हाय तो न आवेगी प्रत्युत बह आगे आग भागी ही चली जावेंगी । जब तुम्हारा ये बिचार दी जविगा ङि हमें इस छायांस कोई प्रयोजन नहीं है, उसका पीछा छोड कर पीछा लौटकर आने लगोगे तब वहीं छाया तुम्हार पीछे पीछे स्वयमेव दौडी आबेगी। उसी तरह हम जिस समय इन पर पदाथोंको प्राप्त करनेके लिये इनके पीछे २ दौडेगे तब ये पदार्थ हमसे दूर २ ही भागेंगे जब हम इनका पीछा छोड देंगे तो ये हमारे पीछे दौडेंगे। विचार इतना ही होना चाहिये कि हमें इन पदा्थोके पीछे दौडन पर और इनक मिलजाने पर धी ये हमारे बयकर रह सद्ग या नहीं ; पुण्य. पापक्रे उदयानुसार ही इनका संयोग




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