सव्होधमार्तंड | Savhodhamartnd

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Savhodhamartnd by मुन्नालाल काव्यतीर्थ - Munnalal Kavyateerth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[५]. नरकमें जन्म ठेता, कभी हीनकुठ वाठे सनुष्योंमें- -जत्म लेता, कभी भक्नवासी आदि देषप्याय धारण करता हैं । अत्यन्त शुभ कर्मका उदय आबे तो मनुष्य पयाये उच्चज्ुलम जन्म पाता है, इसे तरहसे एकेन्द्रियसे पंचोन्द्रिय तककी पर्यायका पाना वडा दुरखंभ है । प्रन -- इन्द्रियां क्रितनी ओर कौन २ सी हाती 0. उत्तर - इन्द्रिया पाच होती ह, उने नाम- स्परीन, रसना, घ्राण, चक्षु ओर कणं दै । प्रदन- इन जीवक प्राण, सेज्ञा, पयोभि ओर उपयोग्‌ कितने २ ओर कौनसे हेति दै ?- उत्तर- इन जीवोके एकेन्द्रियसे पंचेन्द्रिय तक नचि रिख अनुसार १० प्राण तक दते ३ । एकेन्धियके पयाति दका चार प्राण होते हैं-स्पशनेिन्द्रिय, कायबल, श्वासो- च्छवास और आयु । डिरेंदियके--पहठे कहे हुए चार प्राणों रसना इन्ट्रिय और वचन बल और चढ जानेसे छह प्राण रेते र ये भी पयौप्त दशमे ते ई ^ त्रीन्द्रियके-घाणेल्द्रियके बढ जानेसे सात प्राण [दि 2४ चतुरिन्द्रियके -चक्षु इन्द्रियके चढ जानेसे आठम्राणदोते हैं।




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