तत्त्वार्थ - श्लोकवार्तिकालंकार भाग - 1 | Tatvarth - Shlokavartikalankar Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
652
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हर स्
रः २१, बिका गंग, दनद
मे
४
ज ५
श्रीविद्यानंदस्वासिविरचितम्
भीतत्वाथे-श्योकवात्तिंकम्
तर्कैरत्न प. माणिकचेद्रन्यायाचायभदहोद यैविरचिता
त्ला्थचिन्तामणिः
शीमभ्नाभिसुतं सिद्धं विष्मौ षध्वान्तमास्करम् ।
सुशसुरनरेनद्रब्य, प्रणमामि त्रियोगतः ॥ १ ॥
अजिताधावधेमानमदतः सिद्धचक्रकस् ।
स्रयुपाध्यायसाधूंश्र स्तौम्यदं परमेष्ठिनः ॥ २ ॥
प्रमाणनयसतर्दन्यक्छृत्येकान्तिनां गतिम ।
हंसी स्याद्वादगीः सिद्धा, पुनीतान्मम मानसम् ॥ २ ॥
कलिसर्वज्ञोपाहक-आभ्नायविधिन्नृन्द न्द गुरुः ।
आहैतदश्चेनकतां निवसेन्मे हृदि सदा इधुमास्वामी ॥ ४ ॥
समन्ताद्द्रमेत्यखाद कलङ्को भवेत्सुधीः ।
विदयानन्दी प्रमानेमीन्दरन्वर्थगुरुकीतैनात् ॥ ५ ॥
एकेकं न्यायसिद्धान्तक्षाल्ञे धत्तो गभीरताम् ।
सिद्धान्तन्यायपूर्ण मे का गतिः छोकषातिंके ॥ ६ ॥
तथापि सावैविश्वहनगुवाश्षीनोवभाभितः।
ग्रन्थान्धौ प्रविन्ञामीह जिनमूर्तीिदि स्मरन् ॥ ७ ॥
गुरून् शरण्यानास्थायान्घयते देश्चमापया ।
| हिन्दीनामिकयाऽयन्ते स्यु सक्मार्थबोधकाः ॥ ८ ॥
प्रमोजकाः सद्गुरबो नियोज्योऽहं घुजेनः ।
पारनेत्री भवित्री में ऋद्धिचुन्चुगुरुस्सूतिः ॥ ९ ॥।
श्रुतवा रिधिनुन्मध्य ,न्यायशाखासत स नः ।
समन्तभद्र उदधे भावितीथकरो भ्रियात् ॥ १०॥
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