जैन जागरण के अग्रदूत | Jain Jagran Ke Agradhut
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
629
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अयोध्याप्रसाद गोयलीय - Ayodhyaprasad Goyaliya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ जैन-जागरगके झप्रदूत
हैं, जो पैसे लेकर स्यापा करते हें और न उनके ओठोंकी मुस्कराहट, जो
'दिलके सोते-सोते भी ओठोंसे हँसना जानते हैं । वे उनकी क़लमके करिदमे
हैं, जो अपने ही दुखमें रोते और अपने ही सुखमें हँसते हैं । यही कारण
है कि भीतरके पन्नोंकी तसवीरोंमें रंगोंकी चमक भले टी कहीं हल्की हो,
-मावनाओकी दमक हर जगह झलकी हुई है। हाँ, उनसे कुछ कहनेकी
अभिरुचि मुझमें नहीं, जो अध्ययनके लिए नहीं, गेटप देखकर अलमारीमें
सजानेंके लिए ही किताबें खरीदते हैं । जानता हूँ ्ञानपीठका प्रकाशान-
मानदण्ड उनकी प्यासके लिए भी पर्याप्त है, पर में अपनी सिफ़ारिशका
आधार उसे क्यों दूँ !
और अब इस चयनके माली श्री गोयलीयके लिए क्या कहूँ, जो सदा
-साघनोकी उपेक्षा कर, साधनाके ही पीछे पागल रहा ओर जिसके निर्माण
में स्वयं ब्रह्माने पक्षपात कर शायरका दिल, सिहका साहस ओर सपूतकी
सेवावृत्तिको एक ही जगह केन्द्रित कर दिया ।
हमारें ही बीच हैं, वे जो धर्मशाला बनाते हैं और हमारे हो बीच हैं,
वे जो मन्दिरोका निर्माण करते ह, पर क्या इस पुस्तकका निर्माण धर्मशाला
और मन्दिरके निर्माणसे कम पवित्र है ?
सहारनपुर, कन्हैयालाल मिश्च भमाकरः
१५ दिसम्बर १९५१
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