अनकहनी भी कुछ कहनी है | Anakahani Bhi Kuch Kahani Hai
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धन की उतनी नहीं मुझे जन की परवा है
जितनी जो मुझ से खुल कर मन से मिलता है
मैं उस का वशवर्ती हूँ. इस से खिलता है
मेरे प्राणों का शतदल. एक ही दवा है
जीवन के सौरोगों की, चाहो तो ले लो
अच्छे होगे स्वयं, दूसरों के भी दुख को
काट सकोगे, उगा सकोगे सबके सुख को,
अपनापन सबं पर पसार दो. खल कर खेलो
जीवन के सव खेल, न' चिता चेश रहेगी,
सभी ओर अपने ही देगे सदय दिखाई
नहीं रहेगा कोट, नहीं होगी यह खाई
शतु मित्र की. गोरे कलि की न बहेगी
नदी खून की, खून एक ही दोनों में है,
वही हवा आँगन में है जो कोनों में है.
26. 4. 1951
अनकहनी भी कुछ कटनी है 17
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