मानुषी | Manushi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुषा १५
नाम छिख दिया है। ऐसा न करता, तो क्या करता, उनका
रुपया मार खाता ? धमे-फम और छोक-परलोक भी तो
कुछ हैं ।
फलत: एक-एक करके मनोहरढाल के सब हेछी-मेछी ,
अड़ासी-पढ़ोसी उससे दूर हट गये । ऐसे भयकर आदमी के
साथ किसी की पट कैसे सकती थी । सब बार-बन्ये बारे गरीय
आदमी थे । मनो्रछार का चिद्वास ही क्या, न-जाने कब,
किसके विषय में, घट क्या छापा दे !
इस महाभारत का शात्ति-पवं यहीं पर नहीं हो गया ।
एक दिन समुद्र अद्दीर ने तहसीलदार के यहाँ दावा किया कि
मनोर ने उसे बुरी-बुरी गाछियाँ दो हैं, और बुरी
सरह मारा है । सब बातें प्रमाणित करने वाले स्वाथेनत्यागी
साक्षियों की भी कमी न थी । उनमें से कुछ सदाय एसे
भी थे, जो उस दिन गाँव में भी नहीं थे । नहीं थे, तो क्या
हुआ; घर में आग छगी हो, तो नाधदान के पानी से भी उसे
बुभाने में दोष नहीं । विपत्ति-काल का घर्से धर्मे की छाती
रोव् कर ही चलना दै } गय वारो ने यह् निगूढ तत्त्व अच्छी
तरह हृदयंगम कर छिया था ! अतपव स्याय-देवता की श्लुधा
यिटाने के किए जितने असत्य फी अविद्यकता थी, उसकी
पूर्ति करने में उन्हें कोई दिचकिचाहट नदी हुई । इस तरह
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