मआसिरुल् उमरा या मुगल - दरबार | Maasirul Umra Ya Mughal - Darbar

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Maasirul Umra Ya Mughal - Darbar by ब्रजरत्न दास - Brajratna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ 2) जे, जो अद्दस खाँ से सदा सशंकित रहता था, इसे यागरे के पास हतकोंठ जागीर दिया, जिसमे भदौरिया राजपूत बसे हुए थे छोर जो घाद्शाद्दों के विरुद्ध विद्रोह तथा उपद्रव करने के लिए प्रसिद्ध थे । उसने ऐसा इस कारण किया कि एक तो वँ सान्ति स्थापित दो ओर दूसरे यह बादशाह से दूर रहे । वह अन्य अफसरों के साथ वहाँ भेजा गया, जहाँ उसने शांति स्थापित कर दी । बैराम खाँ को अवनति पर अकवर ने इसको पीर- मुहम्मद्‌ खों शरवानी तथा दूसरों के साथ पाँच चषे के अत, -खन्‌ ९६८ हि० के आरभ मेँ मालवा विज्ञय करने भेजा, क्योंकि वँ के सुलतान घाज बहादुर के अन्याय तथा मूखता डी सूचना जादशाह को कई बार सिख चुकी थी । जब अद्म खोँ सारंगपुर 'पहुँच गया, जो बाज बद्दादुर को राजघानी थी, तत्र उसे कु ध्यान हुआ चौर उसने युद्ध को तैयारी को । कई लड़ाइयाँ हुई पर श्त में बाज बहादुर परास्व दोकर खानदेश ङो ओर भागा । अद्हम खाँ कुर्ता से सारंगपुर पर्वा अर बाज बहादुर की संपत्ति पर अधिकार कर छिया, जिसमें जगद्‌ विख्यात पातुर तथा गणिकाएँ भी थीं । इन सफलताओं से यदद घमंडी हो गया ओर पीर सुदम्मद की राय पर नहीं चला ।. इसने माछवा प्रात अफसरों में बॉट दिया. और कुल रूट में से कुछ हाथो सादिक खाँ के साय द्रवार भेजकर स्वयं विषय-भोग में तत्पर हुझा । इससे झकबर्‌ इस पर अत्यंत प्रसन्न हुआ । उसने इसे ठीक करना 'झावश्यक समभता ओर 'आागरे से जर्दी यात्रा करता हुआ १६ दिन में छटे वषे क २७ शावान (१३ मई खन्‌ १५६१ ३० ) को वहाँ पहुँच गया । जब श्रद्हम खो सारगपुर से दो कोस




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