प्रायश्चित्त और उन्मुक्तिका बन्धन | Prayashchit Aur Unmuktitka Bandhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९ पहला अंक
कमर
कुमार, तुम अये नौ आये हो ! बरक्षके नीचे वह कोन
खडा है!
कुमारसिह--
कमठ, कुछ भय मत करो । वह तुम्हारी ही सेवके दिए
खड़ा है । पर तुम उदापत केसी हो ८ तुम्हारा शशेर करप क्यो
रहा है १ प्रिय, घेये घेरा । वह देखे, आकाशम नक्षत्र भी हम
केगेके आगमनकी प्रतीक्षासे चेचल हो रहे है । आओ, आज
तुम्हे मैं अपने हृदय-मंदिरकी अधिछाओ देधी बनाऊँ । पर तुम्हारा
भय अब भी नहीं गया है । कया तुम्हें कुछ आशंका हे £
प्रिये, देखो, मैंने तुम्हें अपने ब्राहु-पाशम बद्ध कर च्या हे ।
तुम इससे मिकल नहीं सकती । अत्र मंदिरकी अंघकार-पृ्ण
नयति मत जाओ | प्रेम आजतक उसमे निद्रित था | अब
परमने आरेकका दन किया द्॑जाउसेदुकम हो गयाथा।
द प्रेमका विजय-दिविस है । आज प्रेमने हम ढोगेंकि हृदर्योको
एकत्रित कर भविष्य भाग्यका निश्चय कर दिया | कमला, आज
५ तुम्हे प्रथम वार देखता हूँ, तुम्हों समीप आकर तुम्हे स्पशे
वारता हूँ ।
[ कमलाकों हृदयसे लगा लेता है । ]
कमला--
कुमार, मुझे स्पश मत करो, मुझे दूर रहो । क्या तुमने ऐसी
ही प्रनिद्ा की यी ?
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