श्रद्धेय के प्रति | Shraddhey Ke Prati

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Shraddhey Ke Prati by आचार्य श्री तुलसी - Aacharya Shri Tulasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नमो श्ररिहन्ताण श्रद्धा, विनय समेतत, नमो ्ररिहन्ताण । प्रास्जल, प्रणत सचेत नमो श्ररिहन्ताण ॥ आव्यात्मिक पथ के श्रधिनेता। वीतराग भ्रू विद्व-मिजेता 1 दारच्चन्द्र सम श्वेत, नमो श्ररिहन्ताण ॥१॥ श्रक्षय, रशन, श्रनन्त, श्रचल जो। श्रटल, श्ररुप, स्वरूप भ्रमल जो। श्रजरामर ग्र्दत, न॒ मो सिद्धाण॥२॥ धर्ममय कै जौ नवाहूक । निर्मल पर्म-नीति निर्वाहक । दासन म समवेत, नमो झायरियाण 11311 श्रागम श्रघ्यापन में. श्रघिदत । विमल कमल सम जोवन श्रविजत 1 शाम, मयम समुपेत, नमो उपज्छायाप ॥4॥ श्राइम-साघना सीन श्रनवर्त 1 विपय-वामनाग्नो म उपरत । शुलनी' & प्रनिरेत, नमो (नोर) नत्व साट 11५1 सपन-पम सो जय हो डं्प {8




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