हिन्दी के निर्माता भाग - 2 | Hindi Ke Nirmata Bhag - 2
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरा भाग ®
आजकल श्राप मध्यप्रांतीय लिटरेरी एकेडेमी के प्रमुख सदस्य
है । विलासपुर में हो रदकर आप अपना अधिक समय भगवद्धजन
'और संत-समागम में बिताते हैं । श्रापका इष्ट प्रथ रामायण है।
आपके अभिमान छू भी नहीं गया । साधारण से साधारण
व्यक्ति से भी बड़े प्रेम से मिलते हैं और साघुश्रों तथा साहित्यिकीं
की यथाशक्ति सेवा करने में तत्पर रहत है ।
साहित्य-जगत् में भानुजी को कीतिं छंदःप्रमाशर श्रोर कान्य-
प्रभाकर पर अवलंबित है । ये देने मथ ज्ञाकमान्य श्नौर स्वंप्रिय
हुए, विशेषकर पहला । दिदो-कनिता का कईं विधार्थी इनकी
उपेक्षा नहीं कर सकता । जब श्राप काशो में भार्ये, ता कवियों
का एक समाज जुटा था, जिसमें .श्रपिकी प्रतिमा ओर कवित्व-
शक्ति के देखकर लोगों ने कद्ा था कि आप तो हिंदी-कतिता के
भानु हैं। तभो से झापका उपनाम भानुः हा गया। अव
तक महामहापाध्याय को पदबो संस्कृत के विद्वान् ब्राह्मणों के
मिलती थी, पर श्रव इस नियम का उ्ुवन हकर इतर जातियों
और हिंदी भाषा के विद्रानां का मी इससे विभूषित किया जाता है ।
इस नियम का विस्तार सेधा वांझनीय ओर ग्राह्य है।
(२) रा० ब० म० म० डा० गोरीशंकर हीराचंद भोभा
दिंदी के इतिदास-मर्मज्ञ तरिद्वानों में [पंडित गोरोशंकर हीराचंद
श्रोफाका आसन बहुत ऊँचा है। इन्होंने दिदो की सेवा के
उहश्य से जा ऐतिहासिक पुस्तके' लिखी हैं, उन सब की बड़े बड़े
विद्वानों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है ।
इनके पूज मेवाड़ के रहनेवाले थे। काई २५० वर्ष हुए होंगे
कि वे लाग सिरी राज्यांतगत रोदिड़ा प्राम में जा बखे। यहा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...