जैन - सिद्धान्त भास्कर भाग - 11 | Jain - Siddhant - Bhaskar Bhag - 11

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Jain - Siddhant - Bhaskar Bhag - 11 by कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किर्णु १]... ज्ञापर्व श्ौर उसरे उन्ताके फाले विपयमे कुछ ज्ञातव्य बातें १९ ॥ (३) अय दम कु रसे प्रमाण उपस्थित के हैं जिनस रेतिद्ासिरोको म्न्धक्तीके समये निणैय करनेमे थोडी-गहुत मदायता मिन समनी है । श्याचाये हुभचन्द्रन प्रन्यके प्रारम्ममें सम तमद्र, देयनन्दि, मट्टारारू और जिनसेन इन चार श्राचायोफ़ सतुति की है इससे स्पष्ट हैं, कि झुमचन्द्र इफके यादूमें हुए होंगे, पर वे कब हुए इसीका निश्वय करना रोप है । यह तो इम ऊपर दी यनना आये है कि ज्ञानाणयें जो उक्त था रूपसे इनोक पाये जादे हैं उनक 'ाधारते गुमच द्रक समयका निणेय करना ठीक नदी है, अत दम इस प्रक्रियाकों छोड़कर न्य प्रमाण प्रस्तुत करने हैं-- (१) ज्ञानाणव्रम 'जिनसेनकी म्तुनि करत हुए उनके यबनोंकों श्रैपिदामन्दित कद्दा गया है । भरेति णक उपापि रही है जो सैद्वान्तिक या सिद्धा तु चफ़ारताकि समान सिद्धान्त शाखके शानाश्यापों मिननी रददा है। इसस माव्यम तो गद्दी होता है मि ज्ञानाणेमके कला इसी परम्परामें हुए हैं । इस पर्म्परामें ऐसे छनेक शुमचद्र नामवाले निदान मिलते हैं। एक पे श्॒ुमचद् है जिन्द घना प्रति समर्षिन की गै थी) इनस स्वमैनाम शक सम्नन्‌ १०४५ मे हुआ था। एफ झुमच ट्र देवकीति पणिड्तेगरे शिप्य दो गये हें । इनको चैव देनकी उपाधि भो थी। इनको कान शक बारहवी शत्तादिका उत्तरा ममा जाता है । पक शुमचन्द्रका उत्लेख भद्रय प्रमीजीने “श्रावय शुमच्र श्रौर उनका समयं! शीर्षम लेग किया है। ये तेरदुर्गों शताद्दिके मध्यम हो गये हैं. । इन्ह म्वय ्तानार्णैवकी प्रति समर्पितरी गै थी। पोज करने पर ऐस झुभचद्र नाम पाने श्लौर भी श्रनेक श्राचा्यं मिलगे । कित ह्न सपेम यद्‌ निश्चित करना कठिन है कि ज्ञानाणयक कतो कौन झुमच द्र हुए १ श्ञानाणवकि ३६ वें प्रकरण लोकका वर्णन '्ाया है । उसमें चतनाया है कि यह लोफ नीचेसे मध्य तक सात राजु श्रौर मध्यते शप्र तर साप्त राजु ऊचचा है। तथां अधोनोकके पास सात राजु, मध्य लोककें पास एक राजु, श्रह्मशरपके पास पाच राज 'और लोकाप्रम एक राजु मिस्तास्वाना है। यवा-- शम्य प्रमासामुन्नत्या सप्त सप्त च रज्य । सप्तैका पञ यङा च मूला-यः निस्तर ।॥९।३६॥ समे क्ष्टत राजवाततिकको मान्यनारी पुष्टिकी गई है । माम दोता है फि क्षानार्णैवके फत्तौ उस समय हुप्‌ हैं जब सिद्धास शास्राजुसार वीरसन स्त्रामीके हारा पस्थापित की गई लोककी मान्यवाका अधिक मार नं हुआ था। इससे ऐसा प्रतीत दोता हैं कि ये जिनसनसे कुद दो का बाद हुए दंगे ।




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