जैन - सिद्धान्त - भास्कर भाग - 16 | Jain - Siddhant - Bhaskar Bhag - 16
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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परिस दैत में पिनिक, छिरीय शमिरीप, यादिलनीय, कालरीय, मिरीथ, पार्थीय श्रीर्
मारतीप यगि फ, मिलन श्रौर मिथ हदवा था, इस मिश्रण के फार्ण हो इस देश ये लागा
या मिश्र कहने लग थे । इसमें परले यदद टेश “श्रागुम” श्रयात् “सुरत्तित” रूप मे प्रस्यांत था |
श्ागुम था ही श्पश्र रूप लिप है। इसनेश में सानय से श्राहि राता मेना (मनु) गय
स्थापि करै कितने यायाय थे, लिसते यद देश सुरक्षित दो गया श्वीर झ्यागुस फइलाया । लय
इस पर रैव लाया का शासा था, तय थर कया कइलाता था, इसका बुछु पता गई । दो सकता है,
कय यह गण्यम्मेन (सर्य स्पार) पदलाता हमा, चैम दि यूनानो यनि द सारात् लका प्री
रास स्थान की रिधिति वा टीव पता लगाने क्लियग न श्रप्यया डी द्रायर्पप्ना द।
जे भी लगा रही दो; यद थी एक सददाएं पगरी । लैस शाख्र उसे उतुग रातमइला श्रार
मदतापिगग निनि मदिर से झलहउ पता हैं। लडा पे निनालय में शी शान्तिनाय ताथफर
बैनमिष के रातदर्शो के परियय के लिय ' दिम्दा विरस्काप ! सा० ३७ पूल ६०३ पर मिस
शाद दगगो 1
श--दिस्दी फिर झोप, साह ३७ पूल ३४१
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