गाँव | Gaon

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Gaon by मुल्कराज आनन्द - Mulkraj Anand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ गांव बैलगाड़ी के पहियों से उड़नेवाली धूल ग्रौर कीचड़ से ब्र सके । लेकिन भारी पहियों को खींचने में बैलों को उयादा वक्त लग गया, हालांकि तगड़ा मुसलमान गूंगा उन्हें बेरहमी से पैना मारकर हांक रहा था । गूंगें ने सर घुटवा रखा था श्रौर वह नीले श्रौर लाल रंग के चारखाने की तहमद पहने था । निहालसिह ने नीचे उतरकर श्रावाज़ दी, ““श्रोए, गाड़ी को जल्दी से निकाल- करलेजा।' लेफिनं इसी वक्त दयें बेल ने निहाल्सिह की तरफ इस तरह देखा जसे उसे ग्रपने मालिक का पुर्तनी दुश्मन नजर भ्रा गया हो, श्रौर उतने जृएमेसे. गरदन निकाल ली । गुगेने जोरसे रास खींची रौर भयभीत बेल की पू मरोड- कर कहा, मैं तेरे चाम की जूतियां पहनूंगा, मर जा तू, तेरी मां मर जाए ! ”' बैल फिर जूए तले श्रा गया । गंगे ने बेरहमी से दूसरे बेल की पीठ में पैर से ठोकर लगाई श्रौर उसे पैने से मारा । जब बैलगाड़ी चल पड़ी तो वह जोर से चिल्लाया, “सत सिरी अकाल, बाबा निहालसिंह तुम दहर गए थे क्या ?”” “जीते रहो पुत्तर । हां, मैं बाहर गया था,” बूढ़े ने श्रपनी पँनी दृष्टि से गाड़ी का निरीक्षण करते हुए कहा, “देखता हूं तुम चारे के नीचे श्रताज छिपाकर ले जा रहे हो।” “उस कंजूस के खलिहान से भ्रगर मैं अनाज की दो-चार बोरियां ले भी भ्राऊं तो क्या हजं है ? तुम नहीं जानते, वह्‌ मुभे कितनी कम दिहाड़ी देता है,” गूंगे ने झांख मारी श्रौर मुस्कराकर कहा । “खाली पेट से श्राधी रोटी मिल जाए तो बेहतर है । उस ठग को यही बदला मिलना चाहिए । पत्तर, भ्रनाज उठा सकते हो, उराग्रो । उसकी पाप की दौलत इसी तरह चोरी मे जाएगी, भ्रौर निहालसिह श्रागे चल पड़ा! उसकी प्रतिशोध- भावना को नय प्रोत्साहन मिल गया था । निहालसिह की चाल तेज हो गई । इसी वक्त नहर के ऊपर बने पुल पर गधों का एक भंड मागता हृश्रा गुजरा! उनपर लाला भगतराम ठेकेदार के भट की ईट लदी थीं । पीछे-पीछे एक गधे पर शेख कु म्हार था, जो श्राजकल बततंन तैयार करने की बजाय ईटों के भट्टे में मजदूरी करता था । ल “श्रोए, उल्लू के पदु ! कितनी धूल उड़ा रहा है ! ” बूढ़े ने दूर से चिल्लाकर कहा । वहू जल्द से जल्द घर पहुंचकर श्राराम करना चाहता था ।




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