भातखण्डे संगीतशास्त्र भाग - 2 | Bhatakhande-sangitshastra Bhag - 2

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Bhatakhande-sangitshastra Bhag - 2  by विष्णुनारायण - Vishnunarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा भाग प्रश्न--क्या प्रंथकारों द्वारा ऐसी रचनाएं भी हुई हैं ? उत्तर--हां, रत्ताकर की टीका यदि तुम देखो तो विश्वावसु, मतंग, तुम्बरु, भरत, कोहल, आदि के उल्लेख व उद्धरण प्राप्त होंगे । यदि हम अन्वेषण की दृष्टि से देखें तो यहद सारा पांडित्य बिलकुल निरुपयोगी है। शाज्ञ देव ने अपना श्रुतिश्रकरण बड़े ही नवीन तरीके से लिखा है और यह्द बहुत कुछ युक्तिसंगत भी है । कल्लिनाथ की टीका के प्रपंच में अभी में तुम्हें नहीं ले जाउऊँगा, क्योंकि उस टीका का शब्द्श: अनुवाद अपने किसी विद्वान ने किया दे, वद्द तुम पढ़ देखना । श्रुति व स्वर के मेद-प्रभेद्‌ कथन करते हुए संस्कृत प्रन्थकारों ने जो पांडित्य प्रदर्शित किया है; वदद देखकर हँसी झाती है। उस समय यह्‌ चल गया, परन्तु अब युग दूसरा हो गया है । उनके इस “अव्यापारेषु व्यापार” का हम समर्थन नहीं करेगे । रणन व अनुरणन तथा उसके भेद, इनसे उत्पन्न हने वाले ्रतित्व व स्वरत्व का अम्वेषण करने में हमे अब समय नहीं खचं करना दै । प्रत्येक श्रुति भिन्न तार पर स्थापित करने क अव्यवहारिकिता का महत्व शाङ्गदेव ने नदीं समभा परम्तु हमारे प्रंथकारों में भी ऐसे क्वचित ही हैं, जो परंपरागत धारणा को बदलने का साहस करें । इस प्रसंग में हमें प्रत्येक संस्कृत प्रंथकार द्वारा निधौरित श्रुतियों व स्वरों के स्थान को जांचकर देखना है । आजकल हम प्रायः अपने अशिक्षित-गायकों पर हूँसते हैं, जिन्हें श्रुति व स्वरो के सेद-ग्रभेद व इनके सम्बन्धो का ज्ञान नहीं है । परन्तु यह विषय हमारे सम्पूर्ण प्रन्थकार भी समसे हुए थे, यह बात भी नहीं पाई जाती । साथ ही यह भी नहीं कहा जा सकता कि हमारे वर्तमान; सुशिक्षित संगीतज्ञ विद्वानों की भी इस विषय में भ्रमपूरणं धारणा नदीं दै । मेरी समक से ऐसा अज्ञान; प्रत्येक काल में समाज में रहा हे तथा रहता है। पूर्वी भारत में प्रवास करते हुए मेरी सेंट एक सुशिक्षित विद्वान से हुई; उनसे श्रुति; मूच्छेना; प्राम आदि की भी चर्चा हुईं। उनकी व मेरी इस सम्बन्ध में जो वाते है, क्या तुम उन्हें सुनना चाहते हो ? प्रश्न--उअवश्य बताइये, क्या-क्या बातें हुई ! उत्तर--उस वार्तालाप का सारांश सेंने अपनी डायरी में इस प्रकार लिखा है:-- 'में:--मद्दाराज, आप तो सुशिक्षित हैं, अतः मुझे विश्वास है कि आप इस विषय में पूर्ण रूप से युक्तिसंगत व तकंपूर्ण चर्चा करेंगे। आप अवश्य ही संगीत के विषय को पौराणिक कथाओं से सम्बद्ध नहीं करेंगे, यह सुभे आशा दै । पंडित--मैं बहुत धर्मनिष्ठ मलुष्य हूँ तथा प्राचीन शास्त्रों का मानने वाला भी हूं । मेंने तो अपने पंडितों के नाद पर विचार और “ओम” शब्द से सर्व सृष्टि केसे उत्पन्न हुईं, इस विषय को आगे बढ़ाया है ।




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