हिन्दी - साहित्य और बिहार भाग - 3 | Hindi Sahitya Aur Bihar Bhag - 3

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Hindi Sahitya Aur Bihar Bhag - 3  by हंसकुमार तिवारी - Hanskumar Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ड ) भाषा-पचारादि भाषा-प्रचार एव अन्य दृष्टियो से इंस खण्ड के महत्त्वपूर्ण व्यक्तियो मे अचम्भित चौवरी 'दीन' ने निरक्षरता-निवारण-सम्बन्धी प्रचार-कार्य मे विशेष अभिरुचि ली । दक्षिण-भारत मे हिन्दी का जो व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ, उसमे अवधनन्दन का योगदान महत्वपूर्णं माना जायगा । उमापतिदत्त शर्मा ने ही हिन्दी-विद्रानो के समक्ष पहले-पहल यह्‌ प्रस्ताव उपस्थित किया कि दिन्दी-सेवियौ का एक अखिलभारतीय सम्मेलन होना चार्दिए । उन्होने कलकत्ता मे एकलिपि-विस्तार-परिषद्‌ नाम की एक अद्वितीय सस्था की स्थापना मे अथक परिश्रम किया। कहते है, मुख्यत गमगानन्द सिह के अध्यवसाय से ही भारतीय डाक-~टिकट मे हिन्दीभाषा को स्थान मिला । गुरुमहादेवाश्रम प्रताप शाही 'पाटचिपृत्र प्रेस कौ स्थापना ओर सुप्रसिद्ध पाटलिपुत्र पल्लिका का प्रकाशन कर प्रभूत यश के भागीबने। सन्ताली एव पहाडिया-भाषा के विशेषज्ञ गोपाललाल वर्मा ने सन्ताली को देवनागरी मे लिपिबद्ध करने की सर्वप्रथम प्रेरणा ही नहीं दी, उक्त भाषा की पहली पोथी भी उन्होने ही तयार की । हिन्दी के श्रचार-कार्य मे भी उनकी विशेष दिलचस्पी रही । प० चन्द्रशेखरधर भिश्र खडीबोली-आन्दोलन के सक्रिय सचालक के रूप मे सामने आये । तत्कालीन सयुक्तप्रान्त के पूर्वी और बिहार के पश्चिमी जिलो मे हिन्दी- प्रचार की दृष्टि से, उन्होंने अनेक नगरो एव ग्रामो मे हिन्दी-सस्थाओ की स्थापना की तथा पत्न-पत्निकाओ को जन्म दिया । ब्रजनस्दन सहाय (जवल्लभ' ने मंथिल-कोकिल बविद्यापति को बंगला-साहित्य से हिन्दी मे लाकर प्रतिष्ठित करने का सववेप्रथम सफल प्रयास किया । भवानीदयाल सन्यासी ने देश के साथ-साथ देश के बाहर भी हिन्दी का पर्याप्त और व्यापक प्रचार {कया । रामकृष्ण परमहस एव स्वामी विवेकानन्द, के बादवे ही एेसे भारत-भक्त सन्यासी हृए, जि्होने भारत कौ सीमा के बाहर हिन्दू और हिन्दुस्तान के साथ-साथ हिन्दी के महत्व का शख फूका । रघुवीर प्रसाद विशेषकर विश्वविद्यालयों मे हिन्दी को उचित स्थान दिलाने की दिशा मे सक्रिय रहे। बिहार की विभिन्न परीक्षाओ मे हिन्दी को अपना स्थान दिलाने का कार्य, उन्होंने बडे साहस के साथ किया । डॉ० राजेन्द्र प्रसाद हिन्दी को 'राष्ट्रभाषा'-पद पर प्रतिष्ठित करने की ओर सतत प्रयत्नशील रहे। स्कूलो में हिन्दी के प्रवेश में आपका बहुत बडा योगदान है। सरकारी कचहरियो मे हिन्दी-नागरी के व्यवहार के लिए रामबालक पाण्डेय के कायं स्तुत्य माने गये । ललितकुमार सिह 'नटवर' ने बिहार-हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन की स्थापना मे अभूतपूवं सहयोग दिया तथा कलकत्ता मे बंगीय हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन की स्थापना कर विशेष यश अजित किया । लालजी सहाय की प्रेरणा से ही दाजिलिग के यूरोपीयस्कूलो मे हिन्दी एक अनिवायं विषय के रूपमे घोषित हुई । इन उल्लेखनीय विभरूतियो के अतिरिक्त जिन अन्य महानुभावो ने हिन्दी. भापा के प्रचार-प्रसार मे विशेष दिलचस्पी ली, उनके नाम इस प्रकार र-देवेन््रभसाद, परमेष्वरप्रसाद शर्मा, भगवतीचरण, भगीरथ झा रमेश भूवनेषए्वरप्रसाद चौधरी “भुवनेश, यशोदानन्दं अखौरी, रामलोचनशरणं “बिहारी”, रामेषवरीप्रसाद “राम,' शिवनन्दन सहाय, शिवनाथ मिश्र ध्यास, शिवपुजन सहाय, हरदीपनारायण सिह “दीप', हरिहरप्रसाद रसिक , कात्तिकेयचरण मुखोपाध्याय और गोवद्धन गोस्वामी । इनमे भगवतीचरण तो चलते-फिरते विश्वकोश थे ओर हिन्दी-प्रचार ही उनके जीवन का




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