द्वंद्वगीत | Dwandageet

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Book Image : द्वंद्वगीत  - Dwandageet

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्रन्द्रगीर ष ¢ ९४ भ क रती खराद की, रुके नहीं यह क्रम तेरा । अभी फूल मोती पर गढ़ दे, अभी वृत्त का दे घेरा। जीवन का यह दर्द मधुर है, तू न. व्यथे उपचार करे । किसी तरह ऊपा तक टिमटिम जलने दे दीपक मेरा | पुर चलने १६ स्या पृदक खद्योत, कौन सुख चमक - चमक दिप जने में! सोच रहा कसी उमंग है जलते - से परवाने में । हाँ, स्वाधीन सुखी है, लेकिन, आओ व्याधा के कीर, बता, केसा दै आनन्द जाल में ` तड़प - तड़प. रह जने में?




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