मल्लिका देवी | Mallika Devi

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Mallika Devi by पं. किशोरीलाल गोस्वामी - Pt. Kishorilal Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १४ ) मल्लिकफादेबयो | { दुसरा भावरा है |!” युचा ने विरोषं तभ चितककं करने का अवसर नहीं पाया, क्यों कि दोध में पक तालबून्त लिये दही सुन्दरी सन्मुख आ उपस्थित हुई। युवा कुछ कहना चाहता था कि उसने कहा--“' यह स्थान भापके याग्य नहों है, मीतर चलकर विश्चाम करिए |“ युवक ने हसकऋर कहा,--“' यही उसम है । कया दम स्थान का झधिकार करने गाए हैं, या इमे या सदा रहना है, जो उसम मध्यम का विचार करे? थोडे विश्राम कै स्यि केष यङ्म्बर क्यों?” 'खुन्द्री,--“ क्या | युवक,--'' सुनो ! चमन महा अन्याय का कार्य, शिया । ' खुन्दूरी,---' कैसा ! मैंने क्या किया १” युचक,--“फिर कहती हो, क्या किया १” अन्ञातकुख्शी लस्थ घासों देयो न कशद्चित्‌ू । ” सो तुमने हमें स्थान देकर नीति पर कालिमा फेर दी आर दम भी पएकान्तस्थल में स्त्रियों के विशेषकर भपरिचित रपणियों के सड् रहना चघर्मचिरुद्ध जानकर गष यद्दासे प्रस्थान फरते हैं ।” यों कष्ते कहते युवा उट खडा हुगा । खुन्द्री से समझा कि 'कदाचित ये हमलोगों की धारतें सुनकर उदास होकर यहासे चले ज्ञाते हों !” इस बास का पथ्चात्ताप रूरके उसने लज़्ञा से सिर शुका लियो भौर ‹ अब क्या कसतव्य ह ? यदह वह सोचने र्गी । सी अवसर में बगल की कोठरी से एक मधुर मंद हास्यध्वनि युवा के कानों में पहुंची , जिसे सुन उसने ष्टि फेर कर देखा कि बगल घाली ब्ोठरी बी किचाडो की आर में एक षाड़शी दा लिका खड़ी , एक टक उसकी आर सतृष्ण नयनां से देल रही है और मुख को अचल से ढक कर मुस्कुरा रददी हि | युवाकीहुष्टिसे उसकी दूष्ठिमिख्तैष्ी ध रुजा से सिमर कर आड्मे हट गई! युवाने जभौतक पूण रूप से उस रूपमाघुरी का मनाहर लित्र अपने हृदय पट पर अ किस नही किया था, तथापि क्षणसैषदामिनी से जो अतुल सुख का अनुभव षहोता है ससे यदह एुख कही चदु कर धा | युवा स्तभितदहाकरडसी धोर देखने लगा, पर षह चपला को-सी छटा फिर आसो के आरो चमन कर छिप गई ! युचा के तयनचफोरों के सम्मुख कमी ऐसी रूपछटा माई न क न भथ ज क आक नि ने पकक कर




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