लखनऊ की कब्र | Lucknow Kii Kabra

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Lucknow Kii Kabra  by पं. किशोरीलाल गोस्वामी - Pt. Kishorilal Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ के सस्पनय को बडा के पनी शङ्को दुलारी के साथ निका ब्राहर की गह डके साथ ही करीनुन्निसा भी निकाली गई । गरज़ यदद कि लुत्फउलिसा ने पक पक करे फवहभुोद्‌ की घर को एकदम से साफ कर दिया झौर अपने भाइयों को अपने माल का घारिस बनोया। इघर जब ज़हरन,गफूरन,पियारो और करोसुल्लिसा निकाली गई तो उस चक्त सब ठी एक तरह से नाउम्मीद हागई थीं, लेकिन कसी मुक्निक्रो के पास कुदं माङ थो, इसलिये चन्‌ कंफिक्र थी, से वहं उन सभो को भपरे साथ लिये हुए लखनऊ के करीब रुस्तमनगर नाम क्वे गनै भा बसी, जहा फुतदघुसदश्ो चाचो रहतो थी । यह भरत आदिम सौर बेचा थी आओौरनव्ादमुदेव्नतखाकेयहोउस्दौ लऽ स्यां को फरान पद्ाठी धौ ) इसख्ियि चद अकसर नन्वा के दी यहाँ रहतों और उसका घर खाली रदता था; क्योंकि उसकी वेदी जमाल्ु- दिसा झपने ससुरार रइती थी और बेटा कांलिमबेग फैजाबाद में, पक षदस्त में पढ़ाता था । सा उसमें झपनी सतीज्ी करोसुनिसा छौर इसके साथ के सभी सोगों को अपने घरमे रल दिया भोर उन लोगों के पर्वरिश का भी कुछ इन्तज़ाम कर दिया 1 यहीं झाकर दुलारी को एक लड़कों पैदा हुआ, जिसका माम मुष्टम्मदमलो रक्ला पया | इसके घाद ते। दुलारी और सस्तम में बराबर खट पट रहा करती, क्यों कि दुढारों का चाल चलन विंगड़ प्बछा था छोर चहद खुझम खुछा फ़तद अली घारिसझली से दिज्ञगों सज्ञाक करने लगी थी; तिप इतना नह, धरि दरुतम ॐ सामने भी उसके जा की में शाता, चद्दी करती | इससे रस्तम बहुत रंजीदह इदुभा ओर उस्ने दुलारी का, भीर उस घर को भी, छोड़ कर बादशाष्टी रिसाले के एङ नामो ष्याद्‌ बग्यास छुली बेग के घे।डे की साईसो झख्तियार की ! इचघर जब इमामबांदी ने दुढारी के खाद बढनका चरचा छना




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